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दलित बने ब्राहमण –भारत मे युग परिवतॆन की शुरुआत

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कमांडर वी के जैटली

दलित बने ब्राह्मण, तिरुपति मंदिर के बने पुजारी, सबने अपने वर्ण को स्वयं चुना, अब से ये ब्राह्मण !

हिन्दुओ में जातिवाद सिर्फ मुगलो, ईसाईयों, वामपंथियों और सेकुलरों द्वारा फैलाई गयी है। असल में हिन्दुओ में जातिवाद की कोई व्यवस्था थी ही नहीं, जाति जन्म के आधार पर नहीं बल्कि आदमी क्या करता है उसके आधार पर होती थी।

पर इस व्यवस्था में भ्रष्टाचार डाल दिया गया और जाति पाती का भेद हो गया।

तिरुमला तिरुपति बोर्ड ने आज अपने 500 मंदिरों के लिए नए पुजारियों के पहले जत्थे को नियुक्त किया। ये सभी “हिन्दू” हैं और पुजारी बनने के विभिन्न संस्कारों के परीक्षाओं को पास करके पुजारी बने हैं।

ये सभी अब तिरुपति मंदिर में विभिन्न पूजा कर्म कराएँगे और ये सभी अब ब्राह्मण वर्ण में है ! हाँ संविधान के हिसाब से ये सभी SC, ST हैं, मायावती के हिसाब से ये सभी “दलित” हैं और अम्बेडकरवादीओ के हिसाब से ये सभी “शुद्र” हैं।

पर मनुस्मृति के अनुसार अब ये सब के सब “ब्राह्मण” बन चुके हैं क्योंकि इन्होंने ये वर्ण स्वयं चुना है, वर्ण कर्म के आधार पर होता है, चूँकि ये सभी अब पुजारी का कर्म करेंगे, और वर्ण व्यवस्था के हिसाब से ये कर्म करने वाले ब्राह्मण होते है, इसलिए ये सभी पुजारी अब से ब्राह्मण है।

आपने कई बार सुना होगा की दलित को मंदिर में नहीं जाने दिया, इत्यादि – ये सभी खेल ईसाईयों, मुगलों, वामियों और सेकुलरों द्वारा 16वी सदी के बाद शुरू किया गया क्यूंकि हिन्दू एकजुट होने लगे तो मुगलों ने हिन्दुओ में जातिवाद डालने की कोशिश की। फिर अंग्रेज आ गए उन्होंने ये काम किया और तब से वामपंथी और सेक्युलर ये काम कर रहे है। इन लोगो ने समाज के मन में जातिवाद इस कदर भर दिया है की आज भी जातिवाद की घटनाये सामने आती है, जबकि सनातन हिन्दू धर्म में ऐसी कोई रोकटोक नहीं है !

ये सिर्फ सनातन धर्म में वामियों, सेकुलरों, अंग्रेजो और उस से पहले के मुगलों द्वारा पैदा किये गए जातिगत भ्रष्टाचार के कारण आज भी होता है, जबकि आप देख सकते है जहाँ पर सनातन धर्म का पालन होता है जैसे की तिरुपति मंदिर, वहां पर शूद्र भी पुजारी बनते है और उसके बाद उनका वर्ण भी बदल जाता है और वो ब्राह्मण बन जाते है।

यह एक शुरुआत है भारत मे एक युगांतरकारी परिवतॆन की! यही है मनुसमित्री का असली या सही अथॆ!! यानि वणॆ – जाति नही वणॆ – कमॆ से निधारित होता है, न कि जनम से।

यह दलित राजनीति करने वालो को भारत का जवाब है! यह भारत को तोडने और टुकडों मे बाटने वालों को भारत का जवाब है। यह भारत मे हिदुंऔ को ईसाई बनाने वालो और मुसलिम-दलित गठजोड की राजनीति करने वालो को भारत का जवाब है।

आधयातमिक भारत का लक्ष भारत मे सभी को ब्राहमण बनाना है, सभी को उचच कोटि के इंसान बनाना है। वणॆ का क्रम आदमी के काम के अनुसार नीचे से ऊपर की ओर है – शुद्र से होते हुए ब्राहमण तक – और सभी को ऊपर उठना है और ब्राहमण बनना है।

भारत को दुनिया का आधातमिक गुरु बनने के लिये भारत मे हर एक आदमी को ब्राहमण बनना है – कमॆ से एक भी शुद्र नही, बलकि सभी ब्राहमण! जनम से कोई भी ब्राहमण नही, कोई भी शुद्र नही।


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