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मतलबखोर और गुन्डों को राजनीति में आने से रोकें!

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प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी ने दिनांक सितम्बर 25, 2017 को  भारतीय जनता पार्टी की कार्यकारिणी सभा में अपने समापन भाषण में एक बहुत ही गंभीर बात कही थी। भारत की आम जनता यदि इस गंभीर बात का अर्थ और उसका महत्व समझ लें तो भारत का काया कल्प हो सकता है। उससे भी ज्यादा इस बात का बडा महत्व समझना भारत की सभी राजनैतिक पार्टियों के लिये जरूरी है।

यदि भारत की आम जनता और यहां की राजनैतिक पार्टियां इस बात का महत्व समझ लें तो फिर भारत को दुनिया की प्रथम महा-शक्ति बनने से कोई भी नहीं रोक सकता। यह महाशक्ति बनने का भारत का प्रयास कोई भारतीय “राष्ट्र भक्ति” की बात नहीं है। यह भारत को सशक्त बनाने का प्रयास मानव जाति की भलाई के लिए है। यह लक्ष्य प्राप्त करने का प्रयास एक तरह से भारत का मानव जाति के प्रति उसके एक दायित्व का बोध है। यह एक बहुत बडी आध्यात्मिक जिम्मेदारी का सवाल है। यह कोई राष्ट्रीय अहंकार का भी प्रदर्शन नहीं है।

प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी ने कहा था कि कांग्रेस के लिए सत्ता उपभोग का साधन था और इसीलिए वह यह नहीं समझ पा रही है कि विपक्ष की भूमिका क्या है। आलोचना के लिए कोई मुददा न हो तो कठोर शब्दों से उसकी भरपाई नहीं की जा सकती।

मोदी के ये शब्द कि सत्ता एक उपभोग का साधन नहीं है सुनने के लिए समझदार भारतीय न जाने कितने समय से इन्तजार कर रहे थे। लोग इन्तजार कर रहे थे कि कोई ऐसा बड़ा आदमी मे आए, कोई मंत्री, प्रधानमन्त्री, राष्ट्रपति इस देश मे आये जो यह कहे कि सत्ता एक उपभोग का साधन नहीं है। इन्तजार था कि कोई यह कहे कि सत्ता केवल एक साधन है किन्ही उच्च लक्ष्यों को प्राप्त करने का।

यह कहना भी शायद गलत होगा कि इस देश के केवल समझदार लोग ही इसका इन्तजार कर रहे थे। भारत के सभी लोग जो सरल हृदय हैं, ईमानदार हैं, जो भ्रष्टाचार मुक्त भारत चाहते हैं, सामाजिक शांति और सौहार्द चाहते हैं, आर्थिक न्याय चाहते हैं, एक सर्वव्यापी परम शक्ति या परमात्मा में विश्वास और श्रद्धा रखते हैं वे सभी इस बात का इन्तजार करते रहे थे। वे इन्तजार कर रहे थे कि इस देश का नेतृत्व कभी तो यह समझे और स्वीकारे कि सत्ता उपभोग का जरिया मात्रा नहीं है बल्कि यह तो एक साधन मात्र है कुछ बेहतर लक्ष्यों को हासिल करने का। यानि बेहतर लक्ष्य मानव जाति के लिए।

इसका क्या मतलब है कि सत्ता एक उपभोग की वस्तु नहीं है बल्कि एक साधन है? इसका मतलब है कि हम राजनीति का उद्देश्य बदलें।

भारत में आज राजनीति एक दिशा विहीन और उद्देश्य रहित व्यवसाय बना हुआ है। आज राजनीति में ऐसे लोग आते हैं जिनके सामने अपने जीवन का कोई उद्देश्य नहीं है। ऐसे लोगों का अपना व्यक्तिगत आंतरिक जीवन अव्यवस्थित होता है। ये नेता किन्ही आंतरिक प्रेरणाओं को पूरा करने के लिए राजनीति में प्रवेश पही करते हैं। न ही वे समाज को बदलने का लक्ष्य लेकर राजनीति मे आते हैं। उनके जीवन मे मानव जाति को किन्ही उच्च्तर लक्ष्यों की तरफ ले जाने का कोई राजनैतिक कार्यक्रम नही  होता।

आज के अधिकांश राजनीतिक नेता बहुत निम्न स्तर का जीवन जीते हैं। उन्हें अपने मनोवैज्ञानिक भावों को विश्लेषण करने और उन भावों को सही दिशा में मोड़ देने का न तो समय होता है और न ही उनकी इच्छा होती है। ऐसे में राजनीति एक बहुत घटिया स्तर का व्यवसाय बन गई है। यह उनकी पाशविक प्रवृत्तियों को संतुष्ट करने का एक साधन मात्र बन कर रह गयी है।  

क्योंकि राजनीति का सीधा सम्बन्ध सत्ता और शक्ति से होता है इसलिए निम्न मनोवृति के लोग ही राजनीति में आते हैं। वे धन, ऐश्वर्य और शक्ति को प्राप्त करने के लिए इसे एक उपयुक्त साधन सभझते हैं। इस तरह से भारत में आज चोर, डाकू और बदमाशों की मनोवृति रखने वाले लोगों के लिए राजनीति एक आदर्श व्यवसाय बन गयी है।

लेकिन राजनीति एक गरिमा पूर्ण सेवा बन सकती है। राजनीति एक व्यवसाय नहीं है। राजनीति मानव समाज को नियन्त्रित करने का यन्त्र है। राजनीति समाज को किन्ही आदर्शों की ओर ले जाने का सबसे ताकतवर माध्यम है।

राजनीति और राजसत्ता ऐसे सामाजिक यन्त्र हैं जिनका भारतवासी आगामी विकास की मंजिल को हासिल करने में उपयोग कर सकते हैं। यदि राजनीति को किन्ही उदात्त लक्ष्यों को हासिल करने का साधन बना लिया जाये तो राजनीति एक गौरवपूर्ण सेवा बन सकती है। यह उच्चतम कोटि के इंसानों का एक गरीमापूर्ण और साहसिक प्रयत्न बन सकती है।

आत्मिक रूप में जागृत व्यक्तियो को राजनीति में आना चाहिए। राजनीति को एक घिनौने व्यवसाय की श्रेणी से निकाल कर मानव विकास के एक यंत्र के रूप में स्थापित करने के लिए यह जरूरी है कि भारत में राजनीति में पूर्ण परिवर्तन लाया जाय। राजनीति में ऐसे लोगों का पदार्पण होना चाहिए जो अपने अस्तित्व के विषय में आत्मिक रूप में सजग और सचेतन हों। 

राजनैतिक नेताऔं को यह ज्ञान होना चाहिए कि मानव एक विकास करता हुआ प्राणी है। उन्हें यह सत्य स्पष्ट रूप में मालूम होना चाहिए कि मानव जाति विकास के उच्चतर लक्ष्यों को प्राप्त करने की ओर बढ़ रही है। राजनीति में आने वाले लोगों को आंतरिक रूप में सचेतन मनुष्य बनना चाहिए। यदि ऐसे लोग यह जान लें कि मनुष्य के अंदर चेतना के भौतिक स्तर के अतिरिक्त प्राणिक , मानसिक  और आत्मिक स्तर भी होते हैं तो वे लोग अपनी भौतिक और प्राणिक मांगों को पूरा करने के लिए यानि धन, ऐश्वर्य और सत्ता को हासिल करने के लिए राजनीति में नहीं आएंगे।

भारत में आज इतनी गिरावट होने के बावजूद भी ऐसे आत्म सचेती लोग विद्यमान हैं जो भारत को गन्दी राजनीति की दलदल से बाहर निकाल सकते हैं। उन्हें इस काम के लिए आगे बढ कर राजनीति मे आना चाहिए।

हमारे नेताओं को यह ज्ञान होना चाहिए कि राजनीति का उपयोग केवल मनुष्य जाति की अगली मंजिल यानि ऊंची चेतना के लोगों का समाज स्थापित करने मे होना हचाहिए। पृथ्वी पर जीवन के उद्भव और उसके बाद कीड़े मकौड़ों से लेकर पशुऔं तक और पशुओं से लेकर इंसानों तक की विकास यात्रा एक बहुत ही मनोरम गाथा है। यह जीवन की एक कूच यात्रा के समान है। जीवन का विकास इंसान पर पहुँच कर रुक नहीं गया है। यह विकास आगे भी जारी रहेगा। जिस तरह से इंसान के पास एक तार्किक बुद्धि है जोकि पशु के पास नहीं है उसी तरह से मानव से अगली जाति के पास एक ऐसी बेहतर क्षमता होगी जो इंसान के पास नहीं है।

उस क्षमता को अभी कोई नाम देना व्यर्थ है। अधिकांश लोग उस क्षमता के बारे में अभी कल्पना नहीं कर सकते। ऐसा नहीं है कि अभी तक वह क्षमता किसी इंसान ने हासिल न की हो। मानव इतिहास में बहुत से व्यक्तियों ने वह क्षमता हासिल की है। ईसामसीह, महात्मा बुद्ध, श्री कृष्णा, निजामुद्दीन औलिया, मीरा बाई, फरीद-उद्दीन गंजसक्कर, रामकृष्ण परंमहंस, विवेकानंद, श्री अरविन्द आदि बहुत सारे व्यक्तियों ने उस बेहतर क्षमता को प्राप्त किया है। लेकिन फिर भी अधिकांश मानव जाति उस क्षमता से अनभिज्ञ ही है।  

इसके बावजूद भी मानव जाति जाने अनजाने में उसी बेहतर क्षमता को प्राप्त करने के लक्ष्य की ओर अग्रसर है। हमे राजनीति से बचना नही चाहिए बल्कि इसका उपयोग इस क्षमता से लैस लोगों के समाज की भारत मे स्थापना करने मे करना चाहिए।


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