Quantcast
Channel: Indian People's Congress
Viewing all articles
Browse latest Browse all 1099

राधा विनोद पाल: “भारत-जापान मैत्री-पुल”का एक और आधार

$
0
0

भारत को एक ऐसे कठोर समय मे – जब चीन सन 1962 से लेकर अब तक भारत के भू-भाग पर कब्जा करने के लिये लगातार हमले कर रहा है और रोज आंखे दिखाता है – अन्तराष्ट्रीय जगत मे अपने मित्र खोजने और उनसे मित्रता बनाने के आधार ढूंढने की सख्त जरूरत है, जापान से मित्रता बढाने के लिये एक बहुत मूल्यवान ऐतिहासिक आधार पहले से ही मौजूद है। जापान उसे भूला नही है और नेहरू युग के भारत ने उसे कभी जाना ही नही है। वह ऐतिहासिक आधार है भारत के महान सपूत राधा विनोद पाल ! जापान जिसका आभारी है – ॠणि है – और आज तक भुला नही पाया है, उसे पश्चिमी बंगाल के कम्युनिस्ट मुख्य मंत्री ने जापान के प्रधान मंत्री शिन्जो आबे के भारत यात्रा के दौरान राधा विनोद पाल के परिवार से मिलने की इच्छा प्रगट करने पर अपने अधिकारियों से पूछा था: कौन राधा विनोद पाल?

यही हाल भारत के लगभग सभी नेताओ का है: कौन राधा विनोद पाल?

जापान टैक्नोलोजी के कुछ अति महत्वपूर्ण क्षेत्रो मे अमेरिका से भी आगे है। ऐसा ही एक क्षेत्र है: आर्टीफिशियल इन्टेलिजेंस  (Artificial Intelligence) और रोबोट। 21वी सदी के युद्ध सेना और सैनिको की बहादुरी से नही लडे और जीते जायेंगे – उसके लिए इन्ही दोनो टैक्नोलोजी की जरूरत है। चीन की गुन्डागर्दी का मुंहतोड जवाब भारत जापान के सहयोग से इन्ही टैक्नोलोजी का विकास और उसका सेना मे उपयोग कर के बखूबी दे सकता है। चीन को विज्ञान मे पछाडने और उसको एशिया की हैसियत मे पिछली कतार मे खडा करने के लिए भारत-जापान मित्रता हमारा पहला कदम होना चाहिए।

भारत की विदेश नीति मे, जापान को “एशिया के सभी मित्र राष्ट्र” योजना मे धुरी बनाना चाहिए। राधा विनोद पाल को उनकी उपलब्धियो के लिए भारत मे पहचान और सम्मान मिलना चाहिये और उनके नाम पर जापान-भारत के सहयोग की परियोजनाएं चलनी चाहिए।

राधा विनोद पाल – एक भारतीय प्रतिभा, एक चमकता सितारा थे।

जापान को याद है वह दिन ! वह दिन था 12 नवंबर, 1948। टोक्यो के बाहरी इलाके में एक विशाल बगीचे वाले घर में “टोक्यो ट्रायल” चल रहा था। द्वितीय विश्वयुद्ध में हारने के बाद, जापान के तत्कालीन प्रधान मंत्री तोजो सहित पचपन जापानी युद्धबन्दियों का मुकदमा चालू था। इनमें से अट्ठाईस लोगों की पहचान क्लास-ए (विश्व शाति भंग का युद्ध अपराध) अपराधियों के रूप में की गई थी। यदि सिद्ध ह़ोता है, तो एकमात्र सजा थी: “मृत्यु दण्ड”!

मुकदमे की सुनवाई पूरी होने के बाद, दुनिया भर के ग्यारह अंतर्राष्ट्रीय न्यायाधीश अपराधियों के “दोषी” होने की घोषणा कर रहे थे। एक के बाद एक कह रहे थे: “दोषी”… “दोषी” …. तभी अचानक एक गर्जना हुई: “दोषी नहीं!”

दालान में एकदम सन्नाटा छा गया। यह अकेला असंतुष्ट न्यायाधीश कौन है ?

उनका नाम था: राधा बिनोद पाल ! वे भारत से एक न्यायाधीश थे !

1886 में पूर्वी बंगाल के कुंभ में उनका जन्म हुआ था। उनकी माँ ने अपने घर और गाय की देखभाल करके जीवन यापन किया। बालक राधा बिनोद गांव के प्राथमिक विद्यालय के पास ही गाय को चराने ले जाते थे। जब शिक्षक स्कूल में पढ़ाते थे, तो राधा बाहर से सुनते थे। एक दिन स्कूल इंस्पेक्टर शहर से स्कूल का दौरा करने आये। उन्होंने कक्षा में प्रवेश करने के बाद छात्रों से कुछ प्रश्न पूछे। सब बच्चे चुप थे। राधा ने कक्षा की खिड़की के बाहर से झांक कर कहा: “मुझे आपके सभी सवालों का जवाब पता है।” उन्हे अन्दर बुलाया गया और उन्होने एक-एक कर सभी सवालों के सही जवाब दिए। इंस्पेक्टर ने कहा: “अद्भुत! आप किस कक्षा में पढ़ते हो ?”

राधा ने जवाब दिया: मैं नहीं पढ़ता; मैं यहां एक गाय को चराता हूं।”

इसे सुनकर हर कोई हैरान रह गया। मुख्याध्यापक को बुलाकर, स्कूल निरीक्षक ने लड़के को स्कूल में प्रवेश लेने के साथ-साथ छात्रवृत्ति भी प्रदान करने का निर्देश दिया। इस तरह राधा बिनोद पाल की शिक्षा शुरू हुई। फिर जिले में सबसे अधिक अंकों के साथ स्कूल फाइनल पास करने के बाद, उन्हें प्रेसीडेंसी कॉलेज में भर्ती कराया गया। M.Sc. गणित करने के बाद कोलकाता विश्वविद्यालय से उन्होंने कानून का अध्ययन किया और डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की। दो चीजों के विपरीत चुनने का कारण पूछने पर उन्होंने कहा था: “कानून और गणिता वास्तव मे इतने अलग नहीं हैं।”

अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय टोक्यो मे बाकी दश न्यायाधीशों से अलग उन्होने अपने निर्णय मे ठोस तर्क दिया कि मित्र राष्ट्रों (WW II के विजेता देशों) ने भी संयम और अंतरर्राष्ट्रीय कानून की “तटस्थता के सिद्धांतों” का उल्लंघन किया है। उन देशो ने जापान के आत्मसमर्पण के प्रस्ताव को अनदेखा करके परमाणु बमबारी की और लाखों निर्दोष लोगों को मार डाला, जोकि अन्तरराष्ट्रीय कानून के विरूद्ध है।

राधा बिनोद पाल द्वारा बारह सौ बत्तीस पृष्ठों पर लिखे गए इस तर्क को देखकर बाकि न्यायाधीशों को भी अभियुक्तों को क्लास – ए से क्लास – बी अपराध मे बदलने पर मजबूर होना पडा और कई अभियुक्तों को छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया। ये क्लास-बी युद्ध अपराधि निश्चित मौत की सजा से बच गये। अंतर्राष्ट्रीय अदालत में उनके इस फैसले ने उन्हें और भारत को विश्व प्रसिद्ध प्रतिष्ठा दिलाई।

जापान इस महान व्यक्ति का सम्मान करता है। 1966 में सम्राट हिरोहितो ने उन्हें देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘कोक्को कुनासाओ’ से सम्मानित किया। टोक्यो और क्योटो में दो व्यस्त सड़कों का नाम उनके नाम पर रखा गया है। उनके निर्णय को कानूनी पाठ्यक्रम में भी शामिल किया गया है। टोक्यो की सुप्रीम कोर्ट के सामने उनकी प्रतिमा लगाई गई है। 2007 में प्रधान मंत्री शिंजो आबे ने दिल्ली में उनके परिवार के सदस्यों से मिलने की इच्छा व्यक्त की और वे उनके बेटे से मिले थे।

डॉ. राधा बिनोद पाल (27 जनवरी 1886 – 10 जनवरी 1967) का नाम जापान के इतिहास में याद किया जाता है। जापान के टोक्यो में उनके नाम एक संग्रहालय और यासुकुनी मंदिर में एक मूर्ति है। उनके नाम पर जापान विश्वविद्यालय का एक शोध केंद्र है। वे कानून से संबंधित कई पुस्तकों के लेखक हैं।

लेकिन भारत में लगभग कोई भी उन्हें नहीं जानता और शायद उनके पड़ोसी भी उन्हें नहीं जानते !

जापानी युद्ध अपराधियों पर उनके फैसले के कारण ही चीनी लोग उनसे नफरत करते हैं।


Viewing all articles
Browse latest Browse all 1099

Trending Articles