Quantcast
Channel: Indian People's Congress
Viewing all articles
Browse latest Browse all 1096

नालन्दा विश्वविद्यालय और कांग्रेसी प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के कारनामे

$
0
0

प्रस्तुति: हरि गुप्ता

अमर्त्यसेन अमेरिका में बैठे बैठे भारत सरकार की आर्थिक नीतियों की इतनी घोर आलोचना – मोदी के विरूद्ध विष-वमन – क्यों करते रहते हैं? आखिर इसका क्या कारण है? आऔ, इसका इतिहास जानें।

वर्ष 2007 में जब नेहरू-गाँधी परिवार के सबसे वफादार “डॉ मनमोहन सिंह” प्रधानमंत्री पद पर थे तब उन्होंने एक समय बिहार के विश्व प्रसिद्ध नालंदा विश्वविद्यालय को पुनर्जीवित करने की “महायोजना” (!!!) पर काम शुरू किया।

डॉ मनमोहन सिंह ने नोबल पुरस्कार विजेता “डॉ अमर्त्यसेन” को असीमित अधिकारों के साथ नालंदा विश्वविद्यालय का प्रथम चांसलर नियुक्त किया। उन्हें इतनी स्वायत्तता दी गयी कि उन्हें विश्विद्यालय के नाम पर बिना किसी स्वीकृति और जवाबदेही के कितनी भी धनराशि अपने इच्छानुसार खर्च करने एवं नियुक्तियों आदि करने का अधिकार था। उनके द्वारा लिए गये निर्णयों एवं व्यय किये गये धन का कोई भी हिसाब-किताब सरकार को नहीं देना था।

क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि इन छुपे रुस्तम मनमोहन सिंह और अमर्त्यसेन ने मिलकर किस तरह से जनता की गाढ़ी कमाई और टैक्स के पैसों से भयंकर लूट मचाई? और वह भी तब जबकि अमर्त्यसेन अमेरिका में बैठे बैठे ही 5 लाख रुपये का मासिक वेतन ले रहे थे, जितनी कि संवैधानिक पदों पर बैठे हुए भारत के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मुख्य न्यायाधीश, मुख्य चुनाव आयुक्त, रक्षा सेनाओं के अध्यक्षों, कैबिनेट सचिव या अन्य किसी भी नौकरशाह को दिए जाने का कोई प्रावधान नहीं है।

इतना ही नहीं, अमर्त्यसेन को अनेक भत्तों के साथ साथ असीमित विदेश यात्रा करने और उन पर होने वाले असीमित खर्च करने का भी अधिकार था।उन्होंने मनमोहन जी की कृपा से सन 2007 से 2014 की सात वर्षों की अवधि में कुल 2730 करोड़ रूपये बतौर चांसलर नालंदा विश्वविद्यालय के खर्च किये। इससे अन्दाजा हो जाता है कि मनमोहन सिंह “ईमानदारी” के चोंगे में कितने बड़े छुपे रुस्तम थे।

चूँकि यूपीए सरकार द्वारा संसद में पारित कानून के तहत अमर्त्यसेन के द्वारा किये गये खर्चों की न तो कोई जवाबदेही थी, न ही कोई ऑडिट होना था और न ही कोई हिसाब उन्हें देना था इसलिए देश को शायद ही कभी पता चले कि वह दो हज़ार सात सौ तीस करोड़ रुपये आखिर गये कहाँ।

“राफेल” पर चिल्लाने वाले राहुल और रंक से राजा बने रॉबर्ट वाड्रा की धर्मपत्नी प्रियंका वाड्रा की पारिवारिक विरासत ने इस लूट को कानूनी जामा पहना कर ऐसा रूप दिया कि कानून के हाथ कितने भी लंबे हो जायँ पर उनका कुछ न बिगड़े।ऐसी ही संस्कृति में पलने बढ़ने के कारण दोनों भाई-बहनों में कोई भी आत्मग्लानि का भाव है ही नहीं; बल्कि विरासत के गरूर के कारण आँखों में ऐसी बेशर्मी की चमक है  कि ये बेझिझक हो कर गरीब, दलित, किसान और पिछड़ों के हक की लड़ाई लड़ने की बात करते हैं ! उनके इस ढोंग की कोई सीमा नही है।

अमर्त्यसेन सेन ने जो नियुक्तियाँ कीं उन पर भी कानूनन कोई सवाल नहीं उठाया जा सकता था। उन्होंने किन किन लोगों की नियुक्तियाँ की, यह भी जान लेते हैं:

उन्होने प्रथम जो चार नियुक्तियाँ की थी वह थी –
1. डॉ उपिंदर सिंह
2. अंजना शर्मा
3. नवजोत लाहिरी
4. गोपा सब्बरवाल

ये कौन लोग थे?

यदि हम इनके बारे मे जानेंगे तो मनमोहन सिंह जी के चेहरे से “ईमानदारी” का नकाब उतर जायेगा। डॉ उपिंदर सिंह मनमोहन सिंह की सबसे बड़ी पुत्री हैं और बाकी तीन उनकी करीबी दोस्त और सहयोगी हैं। इन चार नियुक्तियों के तुरंत बाद अमर्त्यसेन ने जो अगली दो नियुक्तियाँ कीं वो गेस्ट फैकल्टी अर्थात अतिथि प्राध्यापक की थी और वो थे –
1. दामन सिंह
2. अमृत सिंह

ये कौन लोग थे?

पहला नाम डॉ मनमोहन सिंह की मँझली पुत्री और दूसरा नाम उनकी सबसे छोटी पुत्री का है। और सबसे अद्वितीय बात जो दामन सिंह और अमृत सिंह के बारे है वह यह है कि ये दोनों ही “मेहमान प्राध्यापक” अपने सात वर्षों के कार्यकाल में कभी भी नालंदा विश्वविद्यालय मे नहीं आयी !! ये बतौर प्राध्यापक ये अमेरिका में बैठे बैठे ही लगातार सात सालों तक भारी-भरकम वेतन लेती रहीं।

उस दौर में नालंदा विश्वविद्यालय की संक्षिप्त विशेषता ये थी कि विश्वविद्यालय का एक ही भवन था, इसके कुल 7 फैकल्टी मेम्बर और कुछ गेस्ट फैकल्टी मेम्बर (जो कभी नालंदा आये ही नहीं!) ही नियुक्त किये गये जो अमर्त्यसेन और मनमोहन सिंह के करीबी और रिश्तेदार थे। विश्वविद्यालय में बमुश्किल 100 छात्र भी नहीं थे और न ही कोई वहाँ कोई बड़ा वैज्ञानिक शोध कार्य ही होता था, जिसमे भारी भरकम उपकरण या केमिकल आदि का प्रयोग होता हो।

फिर वो 2730 करोड़ रुपये गये कहाँ आखिर?

मोदी जब सत्ता में आये और उन्हें जब इस कानूनी लूट की जानकारी हुई तो अमर्त्यसेन के साथ साथ मनमोहन की पुत्रियों को भी तत्काल बाहर का रास्ता दिखा दिया गया।

मनमोहन सिंह “उर्फ मौनी बाबा” को मोदी जी ने यों ही कहा था कि “मनमोहन सिंह तो बाथरूम में भी रेनकोट पहन कर नहाने की कला जानते हैं”। इस कारनामे से पता चलता है कि “तथाकथित ईमानदार” मनमोहन सिंह कितने बड़े खिलाड़ी थे। इस “छोटी” सी घटना से अन्दाजा लगाया जा सकता है कि उन्होने “बडा” क्या कुछ नही किया होगा और वह भी ईमानदारी का लबादा औढ कर !!


Viewing all articles
Browse latest Browse all 1096

Trending Articles