हम कुछ लेखों को इस इंटरनेट युग में यहाँ पुन: प्रकाशित कर रहे हैं। ये लेख “सहयोग भारती” पत्रिका में 1980 में छपे थे। “सहयोग भारती ” के सम्पादक प्रो रमेश गुप्त थे और प्रकाशक का नाम और पता था : दिवाकर भैया आगाशे , महासचिव , युवक प्रगति सहयोग , बुलडाना – 443001 , महाराष्ट्र। इस पत्रिका में सिलसिलेवार कई लेख छपे थे। हालांकि आज 40 साल बाद सन 2020 में भारत में परिस्थितियां पूरी तरह से बदली हुई हैं , फिर भी इन लेखों के कुछ अंश आज भी बहुत अधिक महत्वपूर्ण हैं। सबसे पहले हम उस लेख को यहाँ दे रहे हैं जिसका शीर्षक है : “भारत के बारे में भविष्यवाणियाँ “। इस लेख को पढ़ते समय यह याद रखिएगा कि आप अक्टूबर 1980 के दौर में हैं। यह लेख यथावत इस तरह है :
“चीरो , जीन डिक्सन , डॉ जूलबर्न , प्रो हरार और जी बेजीलेटन अपनी भविष्यवाणियों द्वारा विश्व में तहलका मचा चुके हैं और काल की कसौटी पर उनकी भविष्यवाणियां खरी उतरी हैं। इसी सत्यता के कारण इन व्यक्तियों ने दुनिया में विशिष्ट सम्मान और प्रतिष्ठा प्राप्त की और कुछ भविष्यवक्ता राजकीय सम्मान और मान्यता के पात्र भी बने। इनके अतिरिक्त विश्व के जाने – माने कई सन्तों और योगियों ने भी आगामी दुनिया के बारे में भविष्यवाणियाँ की हैं। पहली प्रकार के भविष्यवक्ता हालाँकि प्रकृति के गूढ़ , शुक्ष्म और दूसरे जगतों की ओर खुले थे और आमतौर पर समाधि या दूसरी क्रियाओं द्वारा उन शूक्ष्म जगतों में जाकर भविष्य का अंतर्दर्शन करते थे तथा उन अन्तरदर्शनों के आधार पर भविष्यवाणियाँ करते थे , परन्तु फिर भी ये लोग मूल रूप में पेशेवर भविष्यवक्ता ही थे। ये लोग विश्व – विख्यात इसीलिए हुए हैं कि इनके द्वारा की गई भविष्यवाणियाँ सही साबित हुई हैं।
लेकिन सन्तों और योगियों की बात दूसरी है। इन लोगों के जीवन का अधिकांश हिस्सा बहुत से स्तरों के शूक्ष्म जगतों की नियमित यात्रा और उन जगतों के अन्तर्दर्शन में ही बीतता है। लेकिन भविष्य की घटनाओँ को उन शूक्ष्म जगतों में पहले ही घटित होती हुई देख लेने पर भी ये लोग आमतौर पर (कई कारणवश ) उनके बारे में सामान्य लोगों को नहीं बताते। लेकिन ये लोग यदि कभी (अपने अन्तर्दर्शनों पर आधारित ) भविष्यवाणी करते हैं तो वह अक्षरश: घटित होकर रहती है। फिर भी इन लोगों की प्रसिद्धि इनकी भविष्यवाणियों के सही उतरने के कारण नहीं होती, बल्कि कई प्रकार की अतिभौतिक शक्तियों को हासिल कर लेने के कारण होती है। इस तरह , ये लोग भविष्यवक्ता तो नहीं हैं पर भविष्य के बारे में इनके कथन भविष्यवाणियाँ अवश्य हैं। इस प्रकार के सन्त और योगी भगवान बुद्ध , ईसा मसीह , विवेकानन्द , श्री अरविन्द और कई दूसरे हैं।
इन भविष्यवाणियों के बारे में कुछ सवाल उठते हैं। ये सवाल हैं :
एक , भविष्यवाणियों के अनुसार भारत में कब और किस तरह के परिवर्तन होंगे ?
दो , विश्व सन्दर्भ में भारत क्या रूख अपनाएगा और विश्व में उसकी क्या स्तिथि होगी ?
तीन , भारत के आज के राजनैतिक , आर्थिक और सांस्कृतिक (यानी आज के सामाजिक तामझाम के ) नेताओं का , इन भविष्यवाणियों को मद्देनजर रखते हुए , क्या रूख होगा ? और
चार , आज के वैज्ञानिक युग में भविष्यवाणियों पर कैसे विश्वास किया जा सकता है ?
आइये , संकलित (इन ) भविष्यवाणियों के प्रकाश में इन सवालों पर गौर करें।
जहाँ एक यह सवाल है कि भारत मर कब और किस तरह के परिवर्तन होंगे , भविष्यवाणियों के आधार पर ये बातें निश्चित तौर पर कही जा सकती हैं :
१ – भारत में ऐसा व्यक्ति जन्म ले चुका है जो साडी दुनिया का नेतृत्व करेगा।
२ – वह भावी नेता “असाधारण ” रूप से “साधारण ” व्यक्ति है।
३ – भविष्य के उस नेता की प्रगति सन 1980 से होगी और वह 1980 में अपने कार्यों के कारण पहली बार प्रकाश में आएगा और उसका कार्यकाल सन 2000 तक होगा।
४ – वह भविष्य का नेता धार्मिक और पूजा – पाठी प्रवत्तियों का व्यक्ति है और अपने नेतृत्व में धरती के लोगों को देश , धर्म , वर्ण , सम्प्रदाय से ऊपर उठकर “एक आत्मा ” के सिद्धान्त द्वारा आबद्ध करेगा।
भारत के बारे में चार बातें भविष्यवाणियों के आधार पर निश्चित रूप से मानी जा सकती हैं और भावी नेता और भारत के भविष्य के बारे में एक प्रकार से निर्देशक हैं। इन चार निर्देशनों से कई बाते स्पस्ट हो जाती हैं।
यह बिलकुल स्पस्ट है कि वह व्यक्ति जो भारत में जन्म ले चुका है और जो दुनिया का नेतृत्व करेगा , तब तक दुनिया का नेतृत्व नहीं कर सकता जब तक कि वह भारत में नेतृत्व नहीं सम्हाल लेता। वह व्यक्ति भारत का नेतृत्व करेगा। और भारत का नेतृत्व करने का अर्थ है भारत का राजनैतिक , आर्थिक और सांस्कृतिक नेतृत्व करना। इस तरह से वह व्यक्ति भारत की सरकार की बागडोर खुद सम्हालेगा। लेकिन राजनैतिक नेता होने के बावजूद भी वह व्यक्ति भारत की संस्कृति का सबसे अच्छा प्रतिनिधित्व करेगा और एक ऐसी नई अर्थ व्यवस्था को भारत में स्थापित करेगा जिसको बाद में सारी दुनिया अपनाएगी।
इन भविष्यवाणियों से यह बात भी स्पस्ट हो जाती है कि वह व्यक्ति असाधारण रूप से साधारण होगा। वह हर तरह से एक मामूली आदमी होगा। इसका अर्थ है कि वह भावी नेता किसी बड़ी धन – संपत्ति का स्वामी नहीं होगा।
अब हम यह देखें कि भविष्य में भारत विश्व के सन्दर्भ में क्या रूख अपनाएगा और विश्व में उसकी क्या स्तिथि होगी।
भविष्यवाणियों के आधार पर ये बातें निश्चित तौर पर कहीं जा सकती हैं :
१ – भारत अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एक शक्तिशाली देश बन जाएगा। वह विकसित पूंजीवादी देशों की आर्थिक प्रभुता के तले नहीं दबा रहेगा। वह पूँजीवाद को बरकरार नहीं बनाए रखेगा और पूंजीवादी देशों की अंतर्राष्ट्रीय लीक पर नहीं चलेगा। भारत में प्रजातंत्र बना रहेगा।
२ – भारत अंतर्राष्ट्रीय साम्यवाद का नेतृत्व करने वाले देशों की लीक पर भी नहीं चलेगा और उनसे सहयोगपूर्ण सहायता प्राप्त करने के बजाए उनसे दूर हट जाएगा। भारत में मार्क्सवादी झंडे तले समाजवाद की स्थापना कभी नहीं हो पायेगी। लेकिन भारत में “एकात्मा ” के सिद्धान्त द्वारा समाजवाद को देश की अकूत श्रमशक्ति का सदुपयोग करने तथा देश से भूखमरी , अशिक्षा और अनुशासनहीनता दूर करने के लिए अपना लिया जाएगा। यह एक तरह से सामाजिक क्षेत्र में सैनिक कार्यवाही जैसी होगी और जल्दी ही ख़त्म कर दी जाएगी।
३ – सम्पन्नता , शिक्षा और अनुशासन में भारत विश्व का सर्व श्रेष्ठ देश बनते ही समाजवाद और प्रजातंत्र “एक आत्मा” के सिद्धान्त की एक नई और बेहतर व्यवस्था के सामने बेकार पड़ जाएंगे और समाज की बाह्यमुखी व्यवस्था (समाजवाद और प्रजातंत्र) के स्थान पर समाज की अन्तर्मुखी व्यवस्था (आत्मा का साक्षात्कार किये हुए लोगों की समाज व्यवस्था ) भारत में कायम हो जायेंगे। यह एक तरह से नई सभ्यता और संस्कृति होगी। इसको दूसरे देश भी अपनाएंगे और इस सभ्यता से मनुष्यों के विभिन्न वर्गों की आपसी कलह मिटेगी , बीमारियाँ दूर होंगी , विश्वशांति कायम हो जाएगी और देश और जाति (नस्ल ) की सीमायें टूट जाएँगी।
४ – विश्व में भारत एक निर्णायक शक्ति बन जाएगा और उसके हर एक कदम का पूरी दुनिया में प्रभाव पडेगा। दो साम्यवादी देशों – रूस और चीन में भयंकर युद्ध होगा और इस युद्ध के दौरान चीन भारत से दोस्ती करने व मदद के लिए हाथ बढ़ाएगा। लेकिन भारत इस युद्ध में एक तटस्थ देश बना रहेगा और युद्ध में चीन बुरी तरह पराजित हो जाएगा। इस युद्ध के तुरंत बाद तिब्बत पूरी तरह स्वतन्त्र हो जाएगा और स्वेच्छा से भारत संघ में शामिल हो जाएगा। चीन का अहंकार लगातार बढ़ता ही जाएगा और उसी के कारण विश्वयुद्ध की शुरुआत होगी। लेकिन रूस के साथ युद्ध के बाद ही उसका सूर्य अस्ताचल की ओर जाने लगेगा। सन 1995 तक दुनिया भर में भारतीय किस्म की पूजा-आराधना , वेश-भूषा , रहन-सहन और खान-पान फ़ैल जाएगा। तृतीय विश्वयुद्ध के बाद भारत की शक्ति आश्चर्यजनक रूप में बढ़ जायेगी।
अब हम यह देखें कि इन भविष्यवाणियों को मद्देनजर रखते हुए भारत के आज के राजनैतिक , आर्थिक और सांस्कृतिक नेताओं का भविष्य के नेता और निर्देशित परिवर्तनों के प्रति क्या रूख होगा और उनका क्या हश्र होगा।
विभिन्न भविष्यवक्ताओं की ये भविष्यवाणियां यदि सत्य हो जाती हैं तो यह निश्चित है कि विश्व का वह भारतीय नेता उच्चतर चेतना का होगा और आज के भारत के आज के नेताओं से गुणात्मक रूप में बेहतर होगा। इसके साथ ही साथ , उसके नेतृत्व की स्थापना भारत में तभी संभव हो पायेगी जब वह भारत के उन सभी लोगों को संगठित कर लेगा जो (एक आत्मा के सिद्धान्त द्वारा ) उच्चतर चेतना ने निवास करते हों।
आज मानसलोक (बुद्धि-युक्त इंसानों की यह दुनिया ) और अधिमानस लोक (विभिन्न देवताओं की दुनिया ) से भी ऊँचे अतिमानस लोक (ईश्वर की सतत उपस्थिति और कार्य की दुनिया ) की शक्तियां हमारी धरती पर अपनी शूक्ष्म उपस्थिति के द्वारा हस्तक्षेप और घटनाओं का सीधा निर्देश कर रही हैं। ये अतिमानसिक शक्तियां पृथ्वी के भौतिक वातावरण में प्रवेश कर गई हैं और ईश्वरीय इच्छा के अनुरूप कार्य करने वाले व्यक्तियों को ठोकपीट कर अपने यंत्र में बदल रही हैं। ये सभी व्यक्ति उच्चतर चेतना के हैं और उस भावी नेता के पृथ्वी पर कार्य के सहयोगी हैं।
इन्ही व्यक्तियों में कोई एक व्यक्ति अतिमानसिक शक्तियों का सीधा माध्यम है और वे शक्तियां उसके द्वारा हमारी दुनिया के कठोर वातावरण को रूपान्तरित करने में लगी हुई हैं। उस माध्यम और भावी नेता के समस्त कार्य एक दुसरे के पूरक हैं और उच्चतर लोकों की किसी गुह्य योजना के अंग हैं। एक तरह से उन दोनों का , हमारी दुनिया के लिए “आत्मा और शरीर ” जैसा महत्त्व है।
उच्चतर चेतना के लोगों द्वारा भारत के वर्तमान नेतृत्व में हस्तक्षेप और भावी नेता द्वारा नेतृत्व में परिवर्तन निश्चित तौर पर एक बार के लिए भारत में हलचल पैदा कर देगा। उच्चतर चेतना के लोगों द्वारा की गई फेरबदल का आज की मानवता के ठेकेदार और आज के नेता और नेतृत्व जबरदस्त विरोध करेंगे। इसमें संदेह नहीं है क्योंकि ये लोग आज की हमारी घटिया दुनिया के ऐसे पण्डे -पुजारी हैं जिनके हित और अस्तित्व इस घटिया दुनिया के बरकरार रहने पर ही निर्भर करते हैं। लेकिन भविष्यवाणियों को देखते हुए लगता है कि यह विरोध एक हाय – तौबा बन कर ही रह जाएगा। जिस नेतृत्व को भारत की नियति की बागडोर सम्हालनी है वह आगे बढ़ कर बागडोर सम्हाल लेगा और शीघ्र ही भारत विश्व का नेतृत्व करने की हालत में आ जाएगा।
आइये , हम यह देखें कि आज के वैज्ञानिक युग में भविष्यवाणियों पर कैसे विश्वास किया जा सकता है। इस सवाल के उत्तर में तीन बातें कही जा सकती हैं :
एक , आज के हम्मरे विज्ञान की इमारत कार्य -कारण के सिद्धान्त पर रखी हुई है। कार्य – कारण का मतलब है : नियतिवाद = Determinism. इसके मुताबिक़ विश्व के कारण और कार्य की अटूट श्रंखला है और इसके द्वारा सब कुछ पहले से ही निर्धारित है। समस्या केवल कारण और कार्य के संबंधों को जानने की है। यदि कोई व्यक्ति ब्रह्माण्ड में कारण – कार्य के समस्त संबंधों को सम्पूर्ण रूप में जान ले तो वह सही सही भविष्यवाणी कर सकता है। हालाँकि विज्ञान अभी तक यह समस्त जानकारी प्राप्त नहीं कर सका है , लेकिन फिर भी सैद्धांतिक तौर पर वैज्ञानिक रूप में भविष्यवाणियाँ करना संभव है। फिर एक बात और है। विज्ञान लगातार तरक्की करता जा रहा है और जो आज विज्ञान के लिए असंभव है वह कल संभव बन सकता है। पैरा – साइकोलॉजी , हिपनोटिजम , इ एस पी आदि के रूप में विज्ञान कई अतिभौतिक रहस्यों के साथ साथ भविष्यवाणियों के स्रोतों की खोज में लगा हुआ है।
दो , योगियों , सन्तों , ऋषियों (आधात्मिक लोगों ) के अनुसार बहुत से स्तरों पर दुनियाएं बसी हुई हैं ; ब्रह्माण्ड में भिन्न भिन्न लोक हैं। सभी घटनाएँ पहले उच्चतर लोकों में (शूक्ष्म दुनिया में ) घटती हैं और उसके बाद भौतिक दुनिया (पृथ्वी ) में रूप ग्रहण करती हैं। विभिन्न प्रक्रियाओं द्वारा पैदा हुई विशिस्ट अवस्थाओं में उन उच्चतर लोकों की घटनाओं को देखा जा सकता है और उनका वर्णन करना आम लोगों के लिए भविष्यवाणियाँ बन जाता है। सन्दर्भित सभी भविष्यवाणियाँ सूक्ष्म लोकों का दर्शन या विजन हैं जो भविष्यवक्ताओँ ने समाधि , सम्मोहन या विशिष्ट हालातों में प्राप्त किया है।
तीन , भविष्यवाणियों पर विश्वास करने का एक कारण यह है कि इन भविष्यवक्ताओं की पहली भविष्यवाणियां काल की कसौटी पर खरी उतरी हैं। इन व्यक्तियों की विश्व – प्रसिद्धि इसी कारण से हुई है कि उनकी भविष्यवाणियाँ सत्य उतरी हैं। भविष्यवाणियों पर विश्वास करने का यह कोई वैज्ञानिक कारण नहीं है। लेकिन फिर भी दुनिया के अधिकांश लोग इसी इन भविष्यवाणियों पर विश्वास करते हैं।
हालांकि इस समय भारत को बड़ी कठिन परिस्तिथियों का सामना करना पद रहा है , किन्तु क्या यह कहना होगा कि इससे कही नाजुक स्तिथियों में और इससे कहीं कमजोर हालात में उसने इनसे कहीं भीषण परिस्तिथियों का सफलतापूर्वक सामना किया है और अपनी हस्ती को बनाए रखा है। अत: कोई कारण नहीं कि इन भविष्यवाणियों के अनुसार महान भावी भारत हमारे सामने ही साकार होता हुआ न दिखाई देने लगे।”