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अनोखी परीक्षा –एक कहानी

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राजन सिंह परिहार

“बेटा, थोड़ा खाना खाकर जा। दो दिन से तुने कुछ खाया नहीं है।” लाचार माता के ये शब्द थे अपने बेटे को समझाने के लिये।

“देख मम्मी! मैंने मेरी बारहवीं बोर्ड की परीक्षा के बाद वेकेशन में सेकेंड हैंड बाइक मांगी थी, और पापा ने प्रोमिस किया था। आज मेरे आखिरी पेपर के बाद दीदी को कह देना कि जैसे ही मैं परीक्षा खंड से बाहर आऊंगा तब पैसा लेकर बाहर खडी रहे। अपने दोस्त की पुरानी बाइक आज ही मुझे लेनी है। और हाँ, यदि दीदी वहाँ पैसे लेकर नहीं आयी तो मैं घर वापस नहीं आऊंगा।”

एक गरीब घर में बेटे मोहन की जिद्द और माता की लाचारी आमने सामने टकरा रही थी।

“बेटा! तेरे पापा तुझे बाइक लेकर देने ही वाले थे, लेकिन पिछले महीने हुए एक्सिडेंट ..

मम्मी कुछ बोले उसके पहले मोहन बोला, “मैं कुछ नहीं जानता .. मुझे तो बाइक चाहिये ही चाहिये !!”

ऐसा बोलकर मोहन अपनी मम्मी को गरीबी एवं लाचारी की मझधार में छोड़ कर घर से बाहर निकल गया।

12वीं बोर्ड की परीक्षा के बाद भागवत ‘सर’ एक अनोखी परीक्षा का आयोजन करते थे। हालांकि भागवत सर का विषय गणित था, किन्तु विद्यार्थियों को जीवन का भी गणित भी समझाते थे और उनके सभी विद्यार्थी विविधता से भरी यह परीक्षा अवस्य देने जाते थे। इस साल परीक्षा का विषय था “मेरी पारिवारिक भूमिका”!

मोहन परीक्षा खंड में आकर बैठ गया। उसने मन में गांठ बांध ली थी कि यदि मुझे बाइक लेकर नहीं देंगे तो मैं घर नहीं जाऊंगा।

भागवत सर की क्लास में सभी को पेपर वितरित हो गया। पेपर में 10 प्रश्न थे। उत्तर देने के लिये एक घंटे का समय दिया गया था। मोहन ने पहला प्रश्न पढा और जवाब लिखने की शुरुआत की।

प्रश्न नंबर १ :- आपके घर में आपके पिताजी, माताजी, बहन, भाई और आप कितने घंटे काम करते हो? सविस्तर बताइये?

मोहन ने तुरन्त जवाब लिखना शुरू कर दिया।

जवाबः
पापा सुबह छह बजे टिफिन के साथ अपनी ओटोरिक्षा लेकर निकल जाते हैं और रात को नौ बजे वापस आते हैं। कभी कभार वर्धी में जाना पड़ता है। ऐसे में लगभग पंद्रह घंटे।

मम्मी सुबह चार बजे उठकर पापा का टिफिन तैयार कर, बाद में घर का सारा काम करती हैं। दोपहर को सिलाई का काम करती है। और सभी लोगों के सो जाने के बाद वह सोती हैं। लगभग रोज के सोलह घंटे।

दीदी सुबह कालेज जाती हैं, शाम को 4 से 8 बजे तक पार्ट टाइम जोब करती हैं और रात्रि को मम्मी को काम में मदद करती हैं। लगभग बारह से तेरह घंटे।

मैं सुबह छह बजे उठता हूँ और दोपहर स्कूल से आकर खाना खाकर सो जाता हूँ। शाम को अपने दोस्तों के साथ टहलता हूँ। रात्रि को ग्यारह बजे तक पढता हूँ। लगभग दस घंटे।

इससे मोहन को मन ही मन लगा कि उसका कामकाज में औसत सबसे कम है। पहले सवाल के जवाब के बाद मोहन ने दूसरा प्रश्न पढा:

प्रश्न नंबर २ :- आपके घर की मासिक कुल आमदनी कितनी है?

जवाबः
पापा की आमदनी लगभग दस हजार हैं। मम्मी एवं दीदी मिलकर पांंच हजार जोडते हैं। कुल आमदनी पंद्रह हजार।

प्रश्न नंबर ३ :- मोबाइल रिचार्ज प्लान, आपकी मनपसंद टीवी पर आ रही तीन सीरियलो के नाम, शहर के एक सिनेमा होल का पता और अभी वहां चल रही मूवी का नाम बताइये?

उसने उन सभी प्रश्नों के जवाब आसान होने से फटाफट दो मिनट में लिख दिये।

प्रश्न नंबर ४ :- एक किलो आलू और भिन्डी के अभी हाल की कीमत क्या है? एक किलो गेहूं, चावल और तेल की कीमत बताइये? और जहाँ पर घर का गेहूं पिसाने जाते हो उस चक्की का पता दीजिये।

मोहनभाई को इस सवाल का जवाब नहीं आया। उसे समझ में आया कि उसकी दैनिक आवश्यक जरुरतों की चीजों के बारे में तो उसे लेशमात्र भी ज्ञान नहीं है। मम्मी जब भी कोई काम बताती थी तो मना कर देता था। आज उसे ज्ञान हुआ कि अनावश्यक चीजें मोबाइल रिचार्ज, मूवी का ज्ञान इतना उपयोगी नहीं है। उसे लगा कि अपने घर के काम की जवाबदेही लेने और हाथ बटोर कर साथ देने से वह कतराता रहा है।

प्रश्न नंबर ५ :- आप अपने घर में भोजन को लेकर कभी तकरार या गुस्सा करते हो?

जवाबः हां, मुझे आलू के सिवा कोई भी सब्जी पसंद नहीं है। यदि मम्मी और कोई सब्जी बनायें तो मेरे घर में झगड़ा होता है। कभी मैं बगैर खाना खायें उठ खडा हो जाता हूँ।

इतना लिखते ही मोहन को याद आया कि आलू की सब्जी से मम्मी को गैस की तकलीफ होती हैं। पेट में दर्द होता है, अपनी सब्जी में एक बडी चम्मच वो अजवाइन डालकर खाती हैं। एक दिन गलती से मैंने मम्मी की सब्जी खा ली, और फिर मैंने थूंक दिया था और फिर पूछा था कि मम्मी तुम ऐसा क्यों खाती हो? तब दीदी ने बताया था कि हमारे घर की स्थिति ऐसी अच्छी नहीं है कि हम दो सब्जी बनाकर खायें। तुम्हारी जीद्द के कारण मम्मी बेचारी क्या करें?

मोहन ने अपनी यादों से बाहर आकर अगले प्रश्न को पढा:

प्रश्न नंबर ६ :- आपने अपने घर में की हुई आखरी जीद्द के बारे में लिखिये।

मोहन ने जवाब लिखना शुरू किया। मेरी बोर्ड की परीक्षा पूर्ण होने के बाद दूसरे ही दिन बाइक के लिये जीद्द की थी। पापा ने कोई जवाब नहीं दिया था। मम्मी ने समझाया कि घर में पैसे नहीं है। लेकिन मैं नहीं माना। मैंने दो दिन से घर में खाना खाना भी छोड़ दिया है। जब तक बाइक नहीं लेकर दोगे मैं खाना नहीं खाऊंगा और आज तो मैं वापस घर भी नहीं जाऊंगा, कहके निकला हूँ।

अपनी जीद्द का प्रामाणिकता से मोहन ने जवाब लिखा।

प्रश्न नंबर ७ :- आपको अपने घर से मिल रही पोकेट मनी का आप क्या करते हो? आपके भाई-बहन कैसे खर्च करते हैं?

जवाब: हर महीने पापा मुझे सौ रुपये देते हैं। उसमें से मैं मनपसंद पर्फ्यूम, गोगल्स लेता हूं, या अपने दोस्तों की छोटी मोटी पार्टियों में खर्च करता हूँ। मेरी दीदी को भी पापा सौ रुपये देते हैं। वो खुद कमाती हैं और पगार के पैसे से मम्मी को आर्थिक मदद करती हैं। हां, उसको दिये गये पोकेट मनी को वो गल्ले में डालकर बचत करती हैं। उसे कोई मौज का शौक नहीं है, क्योंकि वो कंजूस भी हैं।

प्रश्न नंबर ८ :- क्या आप अपनी खुद की पारिवारिक भूमिका को समझते हो?

प्रश्न अटपटा था। जटिल होने के बाद भी मोहन ने जवाब लिखा।

परिवार के साथ जुड़े रहना, एकदूसरे के प्रति समझदारी से व्यवहार करना एवं मददरूप होना चाहिये। और ऐसे अपनी जवाब देही निभानी चाहिये।

लेकिन यह लिखते लिखते ही अंतरात्मा से आवाज आयी कि अरे मोहन! क्या तुम खुद अपनी पारिवारिक भूमिका को योग्य रूप से निभा रहे हो? और अंतरात्मा से जवाब आया कि नही, बिल्कुल नहीं !!

प्रश्न नंबर ९ :- आपके परिणाम से आपके माता-पिता खुश हैं? क्या वह अच्छे परिणाम के लिये आपसे जीद्द करते हैं? आपको डांटते रहते हैं?

इस प्रश्न का जवाब लिखने से पहले हुए मोहन की आंखें भर आयी। अब वह परिवार के प्रति अपनी भूमिका बराबर समझ चुका था। उसने लिखने की शुरुआत की:

वैसे तो मैं कभी भी मेरे माता-पिता को आज तक संतोष जनक परिणाम नहीं दे पाया हूँ। लेकिन इसके लिये उन्होंने कभी भी जीद्द नहीं की है। मैंने बहुत बार अच्छे रिजल्ट के प्रोमिस तोडे हैं। फिर भी हल्की सी डांट के बाद वही प्रेम और वात्सल्य बना रहता था।

प्रश्न नंबर १० :- पारिवारिक जीवन में असरदार भूमिका निभाने के लिये इस वेकेशन में आप कैसे परिवार के लिये मददगार होंगें?

जवाब में मोहन की कलम चले इससे पहले उनकी आंखों से आंसू बहने लगे और जवाब लिखने से पहले ही कलम रुक गई। बेंच के नीचे मुंह रखकर रोने लगा। फिर से कलम उठायी लेकिन तब भी वह कुछ न लिख पाया। अनुत्तर दसवां प्रश्न छोड़कर पेपर सबमिट कर दिया।

स्कूल के दरवाजे पर दीदी को देखकर उसकी ओर दौड़ पडा।

“भैया! ये ले आठ हजार रुपये, मम्मी ने कहा है कि बाइक लेकर ही घर आना।”

दीदी ने मोहन के सामने पैसे रख दिये।

“कहाँ से लायी हो ये पैसे?” मोहन ने पूछा।

दीदी ने बताया: “मैंने अपने औफिस से एक महीने की सेलेरी एडवांस मांग ली। मम्मी भी जहां काम करती हैं वहीं से उधार ले लिया और अपनी पोकेटमनी की बचत से निकाल लिये। ऐसा करके तुम्हारी बाइक के पैसे की व्यवस्था हो गई हैं।”

मोहन की दृष्टि पैसे पर स्थिर हो गई।

दीदी फिर बोली ” भाई, तुम मम्मी को बोलकर निकले थे कि पैसे नहीं दोगे तो मैं घर पर नहीं आऊंगा! अब तुम्हें समझना चाहिये कि तुम्हारी भी घर के प्रति जिम्मेदारी है। मुझे भी बहुत से शौक हैं, लेकिन अपने शौक से कहीं अधिक मैं अपने परिवार को महत्व देती हूं। तुम हमारे परिवार के सबसे लाडले हो, पापा को पैर की तकलीफ हैं फिर भी तेरी बाइक के लिये पैसे कमाने और तुम्हें दिये प्रोमिस को पूरा करने अपने फ्रेक्चर वाले पैर होने के बावजूद काम किये जा रहे हैं, तेरी बाइक के लिये। यदि तुम समझ सको तो अच्छा है, कल रात को अपने प्रोमिस को पूरा नहीं कर सकने के कारण बहुत दुःखी थे। और इसके पीछे उनकी मजबूरी है। बाकी तुमने तो अनेकों बार अपने प्रोमिस तोडे ही है न?”

मेरे हाथ में पैसे थमाकर दीदी घर की ओर चल निकली।

उसी समय उसका दोस्त वहां अपनी बाइक लेकर आ गया। उसे वह अच्छे से चमका कर लाया था।

“ले, मोहन आज से यह बाइक तुम्हारी, सब बारह हजार दे रहे हैं, मगर यह तुम्हारे लिये आठ हजार में ।”

मोहन बाइक की ओर टकर टकर देख रहा था और थोड़ी देर के बाद बोला:

“दोस्त तुम अपनी बाइक उस बारह हजार वाले को ही दे देना! मेरे पास पैसे की व्यवस्था नहीं हो पायी है और होने की हाल मे संभावना भी नहीं है।”

और वह सीधा भागवत सर की केबिन में जा पहूंचा।

“अरे मोहन! कैसा लिखा है पेपर में?” भागवत सर ने मोहन की ओर देख कर पूछा।

“सर ! यह कोई पेपर नहीं था, ये तो मेरे जीवन के लिये दिशानिर्देश था। मैंने एक प्रश्न का जवाब छोड़ दिया है। किन्तु यह जवाब मै लिखकर नहीं, अपने जीवन की जवाब देही निभाकर दूंगा।”

और वह भागवत सर को चरणस्पर्श कर अपने घर की ओर निकल पडा। घर पहुंचते ही, मम्मी पापा दीदी सब उसकी राह देखते हुए खडे थे।

“बेटा! बाइक कहाँ हैं?” मम्मी ने पूछा।

मोहन ने दीदी के हाथों में पैसे थमा दिये और कहा कि सोरी! मुझे बाइक नहीं चाहिये। और पापा मुझे ओटो की
चाभी दो, आज से मैं पूरे वेकेशन तक ओटो चलाऊंगा और आप थोड़े दिन आराम करेंगे, और मम्मी आज मैं अपनी पहली कमाई शुरू करूंगा। इसलिये तुम अपनी पसंद की मैथी की भाजी और बैगन ले आना, रात को हम सब साथ मिलकर के खाना खायेंगे।

मोहन के स्वभाव में आये इस परिवर्तन को देखकर मम्मी ने उसको गले लगा लिया और कहा कि “बेटा! सुबह जो कहकर तुम गये थे वह बात मैंने तुम्हारे पापा को बतायी थी और इसलिये वो दुःखी हो गये, काम छोड़ कर वापस घर आ गये। भले ही मुझे पेट में दर्द होता हो लेकिन आज तो मैं तेरी पसंद की ही सब्जी बनाऊंगी।”

मोहन ने कहा, “नहीं मम्मी! अब मेरी समझ गया हूँ कि मेरे घर परिवार में मेरी भूमिका क्या है? मैं रात को बैंगन मैथी की सब्जी ही खाऊंगा, परीक्षा में मैंने आखरी जवाब नहीं लिखा हैं, वह प्रेक्टिकल करके ही दिखाना है। और हाँ मम्मी हम गेहूं को पिसाने कहां जाते हैं, उस चक्की का नाम और पता भी मुझे दे दो”

और उसी समय भागवत सर ने घर में प्रवेश किया और बोले “वाह! मोहन, जो जवाब तुमनें लिखकर नहीं दिये वे प्रेक्टिकल जीवन जीकर कर दोगे !!

“सर! आप और यहाँ?” मोहन भागवत सर को देख कर आश्चर्य चकित हो गया।

“मुझसे मिलकर तुम चले गये, उसके बाद मैंने तुम्हारा पेपर पढा इसलिये तुम्हारे घर की ओर निकल पडा। मैं बहुत देर से तुम्हारे अंदर आये परिवर्तन को सुन रहा था। मेरी अनोखी परीक्षा पूर्णत: सफल रही है ! और इस परीक्षा में तुमने पहला नंबर पाया है।”

ऐसा बोलकर भागवत सर ने मोहन के सर पर हाथ रख दिया। मोहन ने तुरंत ही भागवत सर के पैर छुएँ और ओटोरिक्षा चलाने के लिये निकल पडा।


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