वाजपेयी जी की सरकार के विशेष अनुरोध पर भारतीय वैज्ञानिकों ने ब्रम्होस मिसाइल तैयार की थी। ब्रम्होस की काट आज तक दुनियां का कोई भी देश तैयार नहीं कर पाया है। विश्व के किसीं भी देश के पास अब तक ऐसी कोई टेक्नोलॉजी विकसित नही हुई है जो ब्रम्होस को अपने निशाने पर पहुंचने से पहले रडार पर ले सके।
अपने आप मे अद्भुत क्षमताओं को लिये ब्रम्होस ऐसी परमाणु मिसाइल हैं जो ८,००० किलोमीटर के लक्ष्य को मात्र १४० सेकेंड में भेद सकती है। और चीन के लिये ब्रम्होस की यह लक्ष्य भेदन क्षमता ही सिरदर्द बनी हुई है। न चीन आज तक ब्रम्होस की काट बना सका है, न ऐसा रडार सिस्टम ही जो ब्रम्होस को पकड़ सके।
अटलजी की सरकार गिरने के बाद, सोनियां के कहने पर, कांग्रेस सरकार ने ब्रम्होस को तहखाने में रखवाकर आगे का प्रोजेक्ट बन्द करवा दिया। जिसमें ब्रम्होस को लेकर उड़ने वाले फाइटर जेट विमान तैयार करने की योजना थी वह भी अधूरी रह गयी।
ब्रहमोस का विकास रोकने के लिए चीन ने ना जाने कितने करोड़ रुपये-पैसे सोनिया को दिए होंगे, इसका सिर्फ अनुमान ही लगाया जा सकता है।
दस वर्षों बाद, जब मोदी सरकार आई, तब तहखाने में धूल गर्द में पड़ी ब्रम्होस को संभाला गया! वह भी तब, जब मोदी खुद भारतीय सेना से सीधा मिले, तो सेना ने तब व्यथा बताई !
अब है अति महत्वपूर्ण जानकारी। वर्तमान में ब्रम्होस को लेकर उड़ सके ऐसा सिर्फ एक ही विमान हैं और वह हैं राफेल । दुनियाभर में सिर्फ राफेल ही वो खूबियां लिये हुए है, जो ब्रम्होस को सफलता पूर्वक निशाने के लिये छोड़कर वापस लेंड करके मात्र ४ मिनट में फिर अगली ब्रह्मोस को लेकर दूसरे ब्लास्ट को तैयार हो जाता है।
मोदी ने फ्रांस से डील करके, राफेल को भारतीय सेना तक पहुंचाने का काम कर दिया और यहीं से असली मरोड़ चीन और उसके पिट्ठू वामपंथीयों को हुई। इसमें देशद्रोही पीछे कैसे रहते! जो विदेशी टुकड़ो पर पलने वाले गद्दार अपने आका चीन के नमक का हक अदा करने मैदान में उतर आये ! उन्होने मांग की कि राफेल के कल-पुर्जे और उसमे क्या कुछ नई चीजे हैं, जनता को – यानि उन्हें – बताई जाये।
शायद भारतीय सेना और मोदी दोनों ही इस तरह की भेद खोलने की आशंका को भांप गये होंगे। इसलिये राफेल के भारत पहुंचते ही उसका ब्लेकबॉक्स सहित पूरा सिस्टम निकाला गया। राफेल के कोड चेंज कर के उस में भारतीय कम्प्यूटर सिस्टम डाला गया, जो राफेल को पूरी तरह बदलने के साथ उसकी गोपनीयता को बनाये रखने में सक्षम था।
लेकिन बात यहीं नहीं रुकी। राफेल को सेना के सुपुर्द करने के बाद सरकार ने सेना को उसे अपने हिसाब से कम्प्यूटर ब्लेकबॉक्स और जो तकनीक सेना की हैं उसे अपने हिसाब से चेंज करने की छूट दे दी। जिससे सेना ने छूट मिलते ही मात्र ४८ घण्टो में राफेल को बदलकर रख दिया। इस वजह से चीन, जो राफेल के कोड और सिस्टम को हैक करने की फिराक में था, वह हाथ मलते रह गया!
फिर चीन ने अपने पाले वामपंथी कुत्तों को राफेल की जानकारी लीक करके उस तक पहुंचाने काम सौंपा। भारत भर की मीडिया में भरे वामपंथी दलालों ने राफेल सौदे को घोटाले की शक्ल देने की नाकाम कोशिश की, ताकि सरकार या सेना, विवश होकर, सफाई देने के चक्कर मे इस डील को सार्वजनिक करें। जिससे चीन अपने मतलब की जानकारी जुटा सके। पर सरकार और सेना की सजगता के चलते दलाल मीडिया का मुंह काला होकर रह गया!
तब फिर अपने राहुल गांधी मैदान में उतरे! चीनी दूतावास में गुपचूप राहुल गांधी ने मीटिंग की। उसके बाद राहुल गांधी ने चीन की यात्रा की और आते ही राफेल सौदे पर सवाल उठाकर राफेल की जानकारी सार्वजनिक करने की मांग जोरशोर से उठाई। पूरा मीडिया और सारी कोंग्रेस की दिलचस्पी सिर्फ, और सिर्फ, राफेल की जानकारी सार्वजनिक कराने में गी रही ताकि चीन ब्रम्होस का तोड़ बना सके। पर ये अबतक सम्भव नही हो पाया है जिसका श्रेय सिर्फ कर्तव्यनिष्ठ भारतीय सेना और मोदीजी को जाता हैं।
चीन ब्रम्होस की जानकारी जुटाने के चक्कर मे, सीमा पर तनाव पैदा करके युद्ध के हालात बनाकर देख चुका हैं! पर भारतीय सेना की चीन सीमा पर ब्रम्होस की तैनाती देखकर अपने पांव वापस खिंचने को मजबूर हुआ। डोकलाम विवाद चीन ने इसीलिये पैदा किया था कि वह ब्रम्होस और राफेल की तैयारी को देख सके।
इधर कुछ भटके हुए लोग राहुल गांधी को प्रधान मंत्री पद के योग्य समझ रहें हैं, जो खुद भारत की गोपनीयता और सुरक्षा को शत्रु देश के हाथों उचित कीमत पर बेचने को तैयार बैठा हैं ! नेहरू ने भी लाखों वर्ग किलोमीटर जमीन चीन को मुफ्त मे दे दी और जनता समझती रही कि भारत युद्ध हार गया!
आज ये राफेल और ब्रम्होस ही भारत के पास वो अस्त्र हैं जिसके आगे चीन बेबस हैं !