उमेश चंद्र राठी
भारत का संविधान हर व्यक्ति को “अभिव्यक्ति” का – अपनी बात कहने का – अधिकार देता है। अभिव्यक्ति का यह अधिकार हर भारतीय नागरिक का मौलिक अधिकार है। अभिव्यक्ति के इस संवैधानिक अधिकार प्राप्त होने के कारण ही कोई भी नागरिक टेलीविज़न पर अपने नाटक और ड्रामे जनता को दिखा सकता है। यह एक बहुत ही बड़ा अधिकार है।
लेकिन संविधान में जहाँ यह अभिव्यक्ति का अधिकार दिया गया है, वहीं यह भी लिखा हुआ है कि इस अधिकार पर “मर्यादा और नैतिकता” के हित में पहले से मौजूद कानून के दायरे में या नया कानून बना कर सरकार यथोचित पाबंदियां लगा सकती है। सवाल यह उठता है कि “मर्यादा” क्या है, “नैतिकता” क्या है और “यथोचित पाबंदियां” क्या हैं।
“मर्यादा” और “नैतिकता” को मापने का मापदंड सदा एक सा नहीं रहता। यह मापदंड समय बदलने के साथ साथ बदलता रहता है। ऐसा क्यों है ? ऐसा इसलिए है कि समय के साथ आम लोगों के स्वाद और रुचियाँ बदलती रहती हैं। यह अच्छी बात है, यह कुदरत का नियम है। इसमें किसी को कोई दिक्कत नहीं है। दिक्कत कहीं और है। काबिले एतराज बात यह है –
यदि कोई आदमी अपनी अभिव्यक्ति के इस अधिकार का नाजायज फायदा उठाते हुए, मर्यादा और नैतिकता के समाज में “मान्य और स्थापित मापदंडों” का अपने नाटकों और ड्रामों में उलंघन करता है और इसके द्वारा आम लोगों के स्वाद और रुचियों को बदल डालता है और फिर बेशर्मी से उन्ही बदले हुए मापदंडों की दुहाई देकर अपने भोंडे और कुत्सित टेलीविज़न कार्यक्रमों और नाटकों को दिखाने के अपने अधिकार की मांग करता है तो यह सवाल जरूर उठता है कि आखिर उस आदमी को समाज के मान्य और स्थापित मानदंडों को तोड़कर लोगों के स्वाद और रुचियाँ बदलने का अधिकार ही क्यों दिया जाये। यह न्यायसंगत है कि जहाँ भी यह लगे कि कोई आदमी अपने अभिव्यक्ति के इस अधिकार का दुरूपयोग करते हुए आम लोगों के स्वाद और रुचियों को बदलने की कोशिश कर रहा है तो उस पर तुरंत पाबन्दी लगनी चाहिए।
यही हाल टेलीविज़न पर दिखाए जा रहे “बिग-बॉस” कार्यक्रम का है। यह भारत की जड़ों पर कुठाराघात है। इस पर तुरंत पाबन्दी लगनी चाहिए।
आठ दस चरित्रहीन लम्पट और उतनी ही कुलटाओं को, एक घर के अन्दर ठूस दीजिए …जाहिर है, वो वहां बैठ कर साधना तो करेंगे नहीं …उनकी करतूतों को रिकॉर्ड करके टी. वी पर प्रसारित कीजिए …बन गया देश का पसंदीदा सबसे बड़ा शो “बिग बॉस” !
घर में माताएं , बहने , बच्चियां , बच्चे ..पुरुष इस शो से चिपके रहते हैं । लड़ना , झगड़ना गालियाँ बकना …कामोद्देपक अठखेलियाँ ..यही सब तो चरित्र निर्माण के पाठ हैं , जिसे लोग केबल प्रसारण दाता (Cable Provider) को “आप के कलर्स ” के लिए अतिरिक्त शुल्क देकर खरीदते हैं ..
कुलटाओं की बाचालता को महिमामंडित करते हुए , पूरे समाज को दूषित करने का षड्यंत्र अबाध गति से पिछले कई वर्षो से पूर्ण सफलता के साथ चल रहा है । बस एक कमी रह गई थी.. वो थी इस शो के माध्यम से हिन्दू धर्म को कलंकित नहीं कर पाने की ।
इसलिए पिछले वर्ष एक भाड़े के भांड को लाया गया था , जिसका पुकारने वाला नाम “ओम स्वामी” है ..ना उसका “ओम” से कोई मतलब है ना ही किसी दृष्टि से स्वामी है । पर वह अपनी लम्बी दाढ़ी , तिलक और बस्त्र से सच्चे साधु – संतों की छवि को गहरा धक्का लगाने में सफल अवश्य रहा । औसत से कम मानसिक स्तर के तमाम लोग ऐसे भांडों को संत समझते हैं और किसी भी कुकृत्य को करने से पहले बड़ी आसानी से कह देंगे कि , “अरे देखा नहीं बिग – बॉस में स्वामी जी कैसे लिपट कर ..@#$$ ..”
हिन्दू हन्ता शक्तियों का काम इतने पर भी पूर्ण सफल न हुआ तो इस बार एक नया हथकंडा अपनाया गया । अब बारी भजन की थी । अनूप जलोटा कार्यक्रम में आये नहीं हैं, उन्हें लाया गया है । वैसे मै अनूप जलोटा को गायक ही मानता हूँ पर भजन से जुड़े होने के कारण उनका गायन तमाम हिन्दुओं के लिए श्रद्धेय अवश्य था । श्रद्धेय कार्यों से जुड़े व्यक्तियों को इस तरह के कार्यक्रमों में लाना, हिन्दू हन्ताओं की सफल रणनीति का अंग है । पैसे और प्रसिद्धि के लालच बस कच्चा माल उन्हें भरपूर मात्रा में उपलब्ध भी है । हर क्षेत्र में कोई न कोई कलंकी मिल ही जाएगा ..जहाँ नहीं मिलेगा वहाँ बना दिया जाएगा । धीरे – धीरे श्रद्धेय कार्यों से जुड़े प्रत्येक कार्य से सम्बंधित किसी न किसी को शो में लाकर उस कार्य को कलंकित किया जाएगा ताकी आपकी श्रद्धा कमजोर होते – होते समाप्त हो जाय । बस यही तो नास्तिक बनाने की प्रक्रिया है ।
मौज – मस्ती में मस्त, कोमल मष्तिष्क वाले हिन्दुओं को तो इस विषय पर चुटकुला बनाने और सुनाने से ही फुरसत नहीं हैं, चिंतन कहाँ करेंगे । हो सके तो इस प्रकार के छिछोरे शो को अपने घर में प्रवेश न होने दें । यदि आज आपने मौज – मस्ती के चक्कर में टीवी पर सब कुछ चलने दिया तो कल वही सब कुछ आपके घर में घटित होगा !!