श्री प्रकाश बियाणी जी
(स्टेट बैंक के पूर्व राजभाषा अधिकारी एवं दैनिक भास्कर, दिव्य भास्कर आदि समाचार पत्रों के नियमित लेखक)
कांग्रेस के शाशन काल में सिर्फ 40 करोड़ रुपए के लिए हमे अपना 47 टन सोना गिरवी रखना पड़ा था। तब यह स्थिति थी भारतीय इकॉनमी की ! मुझे याद है नब्बे के शुरुआती दशक में भारतीय अर्थव्यवस्था को वो दिन भी देखना पड़ा था जब भारत जैसे देश को अपना सोना विश्व बैंकों में गिरवी रखना पड़ा।
राजीव गान्धी के शासन का में देश की तिजोरी खाली हो चुकी थी। और तभी प्रधान मंत्री राजीव गाँधी की हत्या लिट्टे के आतंकियों ने कर दी थी। चन्द्रशेखर तब नए नए प्रधान मंत्री बने थे। तिजोरि खाली थी; वे घबरा गए; करें तो क्या करें।
इस घटना का वर्णन तबके RBI गवर्नर रहे Y.V रेड्डी ने अपनी पुस्तक “ADVISE AND DECENT” में किया है। वे अपनी किताब में लिखते हैं कि पूरे देश में एक तरह का निराशा भरा माहौल था; राजीव शासनकाल ने कोई रोज़गार नहीं दिया था। नया उद्योग धन्धा नहीं; एक बिजनेस डालने जाओ तो पचास जगह से NOC लेकर आना पड़ता था। कांग्रेस द्वारा स्थापित लाइसेंस परमिट के उस दौर में चारो तरफ बेरोज़गारी और हताशा का आलम था।
दूसरी तरफ देश में मंडल और कमंडल की लड़ाई छीड़ी हुई थी।
अस्सी से नब्बे के दशक तक देश में कांग्रेस ने Economy को ख़त्म कर दिया था। उसी दौरान बोफोर्स तोपों में दलाली का मामला सामने आया।
वे लिखते हैं कि गाँधी परिवार की अथाह लूट ने देश की अर्थ व्यवस्था को रसातल में पंहुचा दिया था। उन दिनों भारत का विदेशी मुद्रा भंडार इतना कम हो गया था कि रिजर्व बैंक ऑफ़ इंडिया ने अपना सोना विश्व बैंक में गिरवी रखने का फैसला किया। हालात ये हो गए थे कि देश के पास तब केवल 15 दिनों का आयात करने लायक ही पैसा था। स्थिती कितनी भयानक थी इसका अंदाजा इस बात से लग जाता है कि भारत के पास तब केवल 1.1 अरब डालर का ही विदेशी मुद्रा भंडार बचा हुआ था।
तब तत्कालीन प्रधान मंत्री चन्द्रशेखर के आदेश से भारत ने 47 टन सोना बैंक ऑफ़ इंग्लैंड में गिरवी रखा था।
Reddy लिखते हैं कि उस समय भी एक दिलचस्प और भारतीय जनमानस को शर्म सार करने वाली घटना घटी।
हुआ यह कि RBI को बैंक ऑफ़ इंग्लैंड में 47 टन सोना पंहुचाना था। ये वो दौर था जब मोबाइल तो होते नहीं थे और लैंड लाइन भी सीमित मात्रा में हुआ करती थी। Reddy लिखते हैं कि नयी दिल्ली स्थित RBI का इतना बुरा हाल था कि बिल्डिंग से 47 टन सोना नयी दिल्ली एयर पोर्ट पर एक वैन द्वारा पहुंचाया जाना था। वहां से ये सोना इंग्लैंड जाने वाले जहाज पर लादा जाना था।
लेकिन नब्बे के दशक में भारतीय प्रशासनिक व्यवस्था और RBI कितनी लचर स्थिति में थी, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि 47 टन सोना लेकर एक बेहद पुरानी RBI की निजी वैन को महज़ 2 सुरक्षा गार्ड्स के साथ एयर पोर्ट पर भेजा गया था। उसके दो टायर आधे रास्ते में ही पंचर हो गए। टायर पंचर होते ही उन 2 सुरक्षा गार्ड्स ने उस 47 टन सोने से भरी वैन को घेर लिया।
खैर बड़ी मशक्कत के बाद ये 47 टन सोना इंग्लैंड पहुचा और ब्रिटेन ने भारत को 40.05 करोड़ रुपये कर्ज़ दिये।
भारतीय अर्थ व्यवस्था से जुडी इस पुरानी मन को दुखी करने वाली घटना का उदाहरण मैंने इस लिए दिया ताकि लोगों को पता चले कि कांग्रेस के जो बेशर्म नेता मोदी के ऊपर देश की अर्थ व्यवस्था को चौपट करने का इल्जाम लगाते हैं, उस महान गाँधी परिवार की अय्याशी की वजह से ही देश को अपना सोना महज़ 40 करोड़ का कर्ज पाने के लिए गिरवी रखना पड़ा था .
किसी देश के लिए इससे ज्यादा अपमान और शर्म की बात क्या हो सकती है ?
मुझे बेहद हैरानी और गुस्सा तब आता है जब देश को महज़ 40 करोड़ रुपये के लिए गिरवी रखने वाले लोग कहते हैं कि मोदी ने भारत की अर्थ व्यवस्था को बर्बाद कर दिया है।
इन तथयों को साबित करने वाले links गूगल पर मोजूद हैं।
हिंदुस्तान के 70 साल के इतिहास में, सिर्फ 3 साल ऐसे हैं, जिसमे हिंदुस्तान ने वर्ल्ड बैंक से एक रुपये का भी कर्ज नही लिया।
और वो तीन साल हैं: 2015-16; 2016-17; और 2017-18; और हां ये तीनों साल मोदी “चायवाले” की सरकार में आते हैं।