Quantcast
Channel: Indian People's Congress
Viewing all articles
Browse latest Browse all 1099

क्या खोया, क्या पाया ? भूली बिसरी यादें !

$
0
0

एच. वी. एस. राठी

भारत की आत्मा गांव में बसती है, ऐसा कहा जाता है। गांव के लोग प्रकर्ति की गोद में रहने वाले स्वाभाव से भोले भाले होते हैं।  अब हम तरक्की कर गए हैं, पर पहले लोग सीधे सादे होते थे। इतिहासकारों ने कहा है कि अति प्राचीन समय से ही भारत के गांव के लोग आपस में सहयोग से रहने वाले लगभग आज़ाद “रिपब्लिक” (गणतंत्र ) होते थे।  हमने बहुत कुछ पाया है , पर हमने बहुत कुछ खो दिया है।  हमने “बाहर” बहुत कुछ पा लिया पर “अंदर” सब कुछ खो दिया है।  उस खोये हुए की केवल याद ही बाकी बची है।  कभी कभी खोयी हुई चीजों की याद भी अच्छी लगाती है।  कुछ यादें :

ढूंढते रह जाओगे!!
लुगाईयाँ का घाघरा
खिचड़ी का बाजरा

सिरसम का साग
सर पै पाग
आँगण मै ऊखलयय
कूण मै मूसल

ढूंढते रह जाओगे!!
घरां मै लस्सी
लत्ते टाँगण की रस्सी
आग चूल्हे की
संटी दुल्हे की
कोरडा होली का
नाल मौली का
पहलवानां का लंगोट
हनुमानजी का रोट

ढूंढते रह जाओगे!!
घूंघट आली लुगाई
गाँम मै दाई
लालटेण का चानणा
बनछटीयाँ का बालणा
बधाई की भेल्ली
गाम मै हेल्ली
घरां मै बुड्ढे
बैठकाँ मै मुड्ढे

ढूंढते रह जाओगे!!
बास्सी रोटी अर अचार
गली मै घूमते लुहार
खांड का कसार
टींट का अचार
काँसी की थाली
डांगरां के पाली
बीजणा नौ डांडी का
दूध दही घी हांडी का
रसोई मै दरात
बालकां की दवात

ढूंढते रह जाओगे!!
बटेऊआँ की शान
बहुआं की आन
पील गर्मियां मैं
गूँद सर्दियाँ मैं
ताऊ का हुक्का
ब्याह का रुक्का
बोरला नानी का
गंडासा सान्नी का
कातक का नहाण
मूंज के बाण

ढूंढते रह जाओगे !!
चूल आली जोड़ी [ किवाड़ ]
गिनती मै कौड़ी
कोथली साम्मण की
रौनक दाम्मण की
पाटड़े पै नहाणा
पत्तल पै खाणा
छात्याँ मै खडंजे अर कड़ी
गुग्गा पीर की छड़ी

ढूँढते रह जाओगे !!
लूणी घी की डली
गवार की फली
पाणी भरे देग
बाहण-बेटियां के नेग
मोटे सूत की धोत्ती
घी बूरा अर रोटी
पीले चावलाँ का न्यौता
सात पोतियाँ पै पोत्ता
धौण धड़ी के बाट
मूँज – जेवड़ी की खाट
घी का माट
भुन्दे होए टाट

ढूंढते रह जाओगे!!
गुल्ली – डंडे का खेल
गुड की सेळ
ब्याह के बनवारे
सुहागी मैं छुहारे
ताँगे की सवारी
दूध की हारी
पेचदार पगड़ी
घोट्टे आली चुन्दडी
सर पै भरोट्टी
कमर पै चोट्टी
ढूढ़ते रह जाओगे !!
कासण मांजन का जूणा
साधूआँ का बलदा धुणा

गुग्गे का गुलगला

बालक चुलबला
बोरले आली ताई
सूत की कताई
मुल्तानी अर गेरू
बलध अर रेहडू
कमोई अर करवे
चा – पाणी के बरवे
ब्याह मै खोड़िया
बालकां का पोड़िया

ढूंढते रह जाओगे !!
हटड़ी अर आला
बुडकलाँ की माला
दूध पै मलाई
लोगाँ कै समाई
खेताँ मै कोल्हू
नामाँ मै गोल्हू

ढूंढते रह जाओगे
गुड़ की सुहाली
खेताँ मै हाली
हारे की सिलगती आग
ब्याह मै पेठे का साग
हाथ का बँटा बाण
सरगुन्दी आली नाण
हाथ मै झोला
खीर का कचोला
ड्योढ़ी की सोड

बंदडे का मोड़ [सेहरा ]
खेत में बैठ के खाना,
डोल्ला का सिरहाना,
लावणी करती लुगाईया,
पानी प्याती पनहारिया,
डेला नीचे खाट,
भाटा के बाट,

ढूंढते रह जाओगे !!
सिर मैं भौरी
अणपढ़ छौरी
चरमक चूँ की जूती
दुध प्यांण की तूती
मावस की खीर
पहंडे का नीर
गर्मियां मैं राबड़ी
खेताँ मैं छाबड़ी
घरां मैं पौली
कोरडे की होली
चणे के साग की कढी
चाबी तैं चालदी घडी
काबुआ कांसी का
काढ़ा खांसी का
काजल कौंचे की
शुद्धताई चौंके की
गुलगला बरसात का
चूरमा सकरात का
सीठणे लुगाइयाँ के
नखरे हलवाईयाँ के
ढूंढते रह जाओगे !!

इस भाषा को पश्चमी उत्तर प्रदेश के पुराने लोग आसानी से समझ सकते हैं।


Viewing all articles
Browse latest Browse all 1099

Trending Articles