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जुमला, जुमलेबाजी और जुमलेबाज!

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लेखक: नामालूम

आज मोदी और उसकी कुल जमा चार साला सरकार के लिए एक शब्द प्रचलन में है या यूं कहिए जबरदस्ती प्रचलित किया जा रहा है “जुमला सरकार, मोदी जुमला बाज”।

इसी के प्रकाश में आज हम थोड़ा बताना चाहेगें कि जुमलेबाजी क्या होती है और किस हद तक होती है । आखिर जुमलेबाजी की सीमा क्या होती है? यानि कोई नारा या आश्वासन या संकल्प आखिर कितने समय बाद जुमला कहलाता है ।

हमारे देश में एक प्रधानमंत्री हुए थे श्रीमान् जवाहरलाल नेहरू, स्वतंत्र भारत के पहले प्रधान मंत्री । उन्होंने एक नारा दिया था ‘गरीबी हटाओ’ । समय यही कोई 1950 के आस पास। महोदय ने 14 साल शासन किया (1950 के बाद)। हां, शासन किया। मरते दम तक उसके होठों पर यही नारा था ‘गरीबी हटाओ’ ।

इसी बीच गरीब घर के लाल बहादुर शास्त्री जी प्रधानमंत्री बने । उनको पर्याप्त समय नहीं मिला कि इस नारे की पड़ताल करते, बदलाव करते।

नेहरू अपना ‘ गरीबी हटाओ’ का नारा पुत्री इंदिरा को वसियत के रूप में सौंप कर गये । इंदिरा ने बड़ी शिद्दत के साथ इसे संभाल कर रखा, सींचा, सर्दी गर्मी और बारिश से बचा कर रखा क्या मजाल की नारे को जरा भी खरौंच आ जाये, हर लोकसभा चुनाव, हर विधान सभा चुनाव, हर जिला परिषद्, पंचायत, नगरपालिका चुनाव में गरीबी हटाओ का नारा उनके साथ रहा, झण्डों के रूप में, बैनरों के रूप में, बुकलेट के रूप में गरीबों की भीड़ के रूप में 1984 तक, नारा सोते उठते, गाते- खाते, पीते हर समय याद रहा, गरीबों को भूल गये । जाते जाते वही गरीबी हटाओ का नारा सुपुत्र राजीव गांधी को दे कर गई । या यूं कहो मां की जायदाद थी पुत्र ने ग्रहण कर ली ।

पांच साल तक राजीव ने गरीबी हटाओ का नारा पूरी जोशो खरोश से लगाया। पूरी ताकत इस नारे के पीछे झौंक दी ( सनद रहे गरीबी हटाने के पीछे नहीं , ताकत नारे के पीछे झौंकी)। एक से एक चमकदार पोस्टर छापे, सुन्दर चमकीले बड़े बड़े अक्षरों में दीवारों पर लिखा गया । इस नारे का जितना आदर सत्कार, पालन- पोषण हुआ उतना आदर सत्कार तो हमारे देश में राष्ट्रपतियों का भी नहीं हुआ ।

क्या गरीबी दूर हुई ?

इसके लिए किसी विपक्ष की, किसी बुद्धिजीवी की , किन्ही आंकड़ों की, किन्हीं अर्थशास्त्रियों की राय लेने की आवश्यकता नहीं । इसका जीता जागता सबूत खुद कांग्रेस की ही सरकार ने दिया जब खुद के साठ साल शासन के बावजूद उसको भोजन की गारण्टी कानून लाना पड़ा । यानी ६० साल के असीमित शासन के बावजूद आप इतना नहीं कर पाये की नागरिक अपने भोजन लायक खुद कमा सकें ।

स्वतंत्र भारत के इतिहास में इससे बड़ा जुमला नहीं हो सकता कोई । क्या गरीबी वो वास्तव में हटाना चाहते थे?

नहीं ये वो झूनझूना था जो रोते बच्चे के सामने बजाने से वो एक बारगी चुप हो जाता है । अगर नेहरू के समय गरीबी हट जाती तो इंदिरा किस पर शासन करती और यदि थोड़ा देर से ही सही इंदिरा के समय गरीबी हट जाती तो राजीव किस का राजा होता? गरीबों पर शासन के लिए गरीब चाहिए तो ।

ये वो जुमला था जिसके बल पर नेहरू की तीन तीन पीढ़ियों ने अपना पेट ही नहीं खजाना भरा ।

दूसरा जुमला- नेहरू का पंचशील सिद्धान्त, शांतिपूर्ण सह अस्तित्व का नारा था । रंगमहल से शांतिपूर्ण सहअस्तित्व का नारा देने वाले नेहरू के समय भारत ने तीन तीन युद्ध झेले. कमोबेश हर बार मात खायी । लेह और लद्दाख खोया, आधा कश्मीर खोया । भारत की साख खोयी, बफर स्टैट तिब्बत खोया । नेहरू किसके साथ शांति का राग अलापता था । देश दोनों और से हिंसक दुश्मनो से घिरा था । उसके पंचशील के जुमले का दंश भारत आज तक झेल रहा है ।

तीसरा जुमला था – गुट निरपेक्षता । किस से निरपेक्षता !! गुटनिरपेक्षता के नाम पर कभी बांडुंग,कभी काहिरा तो कभी बेलग्रेड में सुसज्जित मंचों से भाषण देने वाला और खुद के गले में गुट निरपेक्षता का हार डलवाने वाला नेहरु जब तक जीया सोवियतगुट का पिट्ठू रहा । सोवियत की पूंछ पकड़ कर चलने वाला नेहरू जीवन भर गुटनिरपेक्षता के गीत गाता रहा और भारत को धोबी का कुत्ता बना कर रखा ।

चौथा जुमला था- धर्मनिरपेक्षा । इस शब्द को इंदिरा ने अपनी सत्ता के मद में संविधान की प्रस्तावना में डलवाया । बहुत लोकतंत्र , संविधान की आज बात करने वाली इस पार्टी की, सत्ता मद में चूर उस शासिका ने उस समय लगभग आधे संविधान को ही बदल डाला था। और प्रस्तावना में जोड़ा धर्म निरपेक्षता शब्द । कैसी धर्मनिरपेक्षता, क्या धर्म निरपेक्षता के ये मायने हैं कि सत्ता केवल , मानव सभ्यता के पनपने से ले कर वर्तमान तक इस धरती पर पले बढ़े, फूले फले, बहुसंख्यक लोगों के विश्वास, श्रद्घा, मान्यताओं को तोड़ कर, कुचलकर उनके धर्मग्रंथों का मखौल उड़ा कर, उनके श्रद्धास्थलों को अपमानित कर, केवल एक विश्वास के लोगों को लेकर आगे बढ़े, केवल उन्हीं का दु:ख सरकार को दु:ख लगे , केवल उनकी गरीबी सरकार को गरीबी लगे , केवल उनकी श्रद्धा सरकार को श्रध्दा लगे शेष सब मिथ्या, मिथक, ढोंग लगे ?

इन जुमलों की गंभीरता देखिये। इनको पकने में वर्षों लगे और अंत तक जुमले ही रहे। गरीबी आज भी वहीं की वहीं है, शांतिपूर्ण सहअस्तित्व आज भी खतरे में है, गुट निरपेक्षता कब की धूल धुसरित हो गयी । आज भी लोग मनरेगा में गड्ढे खोद कर पेट भरते हैं । बहुत लम्बा , मतलब बहुत ही लम्बा समय मिला इन नारों को जमीन पर उतार कर सच्चाई में बदल कर नीतियां बनाने और लागू करने के लिए।

लेकिन नहीं किया क्योंकि वो इसके इच्छुक नहीं थे. और आज जो इच्छुक है या दिल से ये करना चाहता है । जिसके पीछे कोई नहीं जिसको वो सत्ता सौंप कर जाये या जिसके लिए सत्ता के लालच में वो झूठे वादे करे ।

उसके वादे आपको जुमले लगते हैं । वो भी केवल चार साल में । मात्र चार साल में । नेहरू के 17 साल , इंदिरा के भी इतने ही साल और राजीव के पांच साल, सोनिया के दस साल, कुल ४९ साल एक ही परिवार एक ही नारा की ऐवज में आपको चार साल लम्बे लगने लगे !!


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