In the year 1993, the year when free India for the first time was made to embark by the then political power onto the path of economic liberalization and the western way of life without realizing that these would create catastrophic consequences for Indian national life, a few young persons felt concerned about the impending future of this country.
They realized that such economic liberalization and western way of life – unless there was proper guidance and control of human conduct by a moral sense founded on an enlightened spiritual wisdom – would be nothing but forcing the Indian society onto a path where the low level human tendencies of a few people who are rich – but who live on a very low level of human consciousness – would play their shameless naked dance.
They felt that the money power generated by such economic liberalization would percolate down step by step to a large number of middle and higher sections of the Indian society, which sections in turn, with the help of their money power, would eat away the purity of all democratic institutions of national governance, viz., political parties, Parliament, judiciary, bureaucracy etc. It was the foreboding of a coming corrupt India……. (continued)
“काल चक्र के पथ पर, जिसे हम इतिहास कहते हैं, बहुत सी सभ्यताएं उभरी हैं और नष्ट हुईं हैं। उन सभ्यताओं के समक्ष कई बार संकट के भयावह क्षण आये। कई बार उन संकटों को हल कर लिया गया और कई बार उनको हल नहीं किया जा सका और वे नष्ट हो गईं। लेकिन हर बार वे सभ्यताएं केवल कुछ जातियों या राष्ट्रों तक ही सीमित रही थी। आज एक बार फिर हमारी सभ्यता के संकट ग्रस्त होने के स्पष्ट संकेत मौजूद हैं। यह संकट पहले से अधिक व्यापक और संहारक होगा। समूची मानव जाति इस संकट की चपेट में आ सकती है और पृथ्वी पर जीवन का अस्तित्व ही दांव पर लग सकता है।
“आज का संकट उस मानव के पतन का संकट है जिसके हाथ में जन संहारक शस्त्र हैं ; यह उसकी सभ्यता के पतन का संकट है। यह उस संधिकालीन युग का संकट है जहाँ एक ओर तो आधुनिक सभ्यता अपने सार रूप में जर्जर हो कर अपने जीवन के सांध्यकाल में पहुँच गयी है लेकिन दूसरी ओर एक ऐसी बेहतर और नयी सभ्यता जन्म नहीं ले पाई है जो पुरानी का स्थान ले सके। इस संकट के निवारण पर ही मानव जाति का भविष्य निर्भर करता है। …..(continued)
“लेकिन अभी रात्री का अन्धेरा है। सवेरा होने में अभी कुछ देर है। मानव मन की गहराईयों में आधुनिक सभ्यता के प्रति एक अस्वीकृति का भाव है ; उसके मनोवैज्ञानिक अस्तित्व के अंतस्थल में एक छटपटाहट और बैचेनी है। ये भाव ही नयी सभ्यता के जन्म लेने की तैयारी के संकेत हैं। नयी सभ्यता के जन्म को संभव बनाने के लिए आधुनिक विज्ञान उर्वर भूमि तैयार करने में लगा है। आधुनिक सभ्यता के इस संकट काल में – दो सभ्यताओं के इस संधिकाल में – विज्ञान और उसके द्वारा उद्घाटित सत्य ही अस्थिर मानव-मन के लिए सहारा और आशा की किरण हैं।
“इस युग परिवर्तन की बेला में, आओ , हम भारतवासी जागृत हों, संगठित हों और पहल करें राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मानव जाति के भविष्य को गढ़ने में, नयी बेहतर और स्वर्णिम सभ्यता के स्थापन में ! ….. (continued)
“राजनीति का उद्देश्य बदलें : भारत में आज राजनीति एक दिशाविहीन और उद्देश्य रहित व्यवसाय है। राजनीति में वे सभी लोग आते हैं जिनके सामने अपने जीवन का कोई उद्देश्य नहीं है। ऐसे लोगों का अपना व्यक्तिगत आंतरिक जीवन भी अव्यवस्थित होता है। ये नेता न तो किन्ही आंतरिक प्रेरणाओं को पूरा करने के लिए राजनीति में प्रवेश करते हैं और न ही इनके सामने समाज को और उससे भी बढ़ कर मानव जाति को किन्ही उच्च्तर लक्ष्यों की तरफ ले जाने का कोई कार्यक्रम होता है। आज के अधिकांश राजनीतिक नेता बहुत निम्न स्तर का जीवन जीते हैं। उन्हें अपने मनोवैज्ञानिक भावों को विश्लेषण करने और उन भावों को सही दिशा में मोड़ देने का न तो समय होता है और न ही इच्छा होती है। ऐसे में राजनीति एक बहुत घटिया स्तर का व्यवसाय और पाशविक प्रवृत्तियों को संतुष्ट करने का एक साधन मात्र बन कर रह गयी है। क्योंकि राजनीति का सम्बन्ध सत्ता और शक्ति से होता है इसलिए निम्न मनोवृति के लोग राजनीति में इसलिए आते हैं कि वे धन, ऐश्वर्य और शक्ति को प्राप्त कर सकें। इस तरह से भारत में आज चोर, डाकू और बदमाशों की मनोवृति रखने वाले लोगों के लिए राजनीति एक आदर्श व्यवसाय बन गयी है।” …..(continued)
“आत्मिक रूप में जागृत व्यक्ति राजनीति में आएं : राजनीति को एक घिनोने व्यवसाय की श्रेणी से निकाल कर मानव विकास के एक यंत्र के रूप में स्थापित करने के लिए यह जरूरी है कि भारत में राजनीति में पूर्ण परिवर्तन लाया जाय। राजनीति में ऐसे लोगों का पदार्पण होना चाहिए जो अपने अस्तित्व के विषय में आत्मिक रूप में सजग और सचेतन हों। ऐसे लोगों को यह ज्ञान होना चाहिए कि मानव एक विकास करता हुआ प्राणी है। उन्हें यह सत्य स्पष्ट रूप में मालूम होना चाहिए कि मानवजाति विकास के उच्चतर लक्ष्यों को प्राप्त करने की ओर बढ़ रही है। राजनीति में आने वाले लोगों को आंतरिक रूप में सचेतन मनुष्य बनना चाहिए। यदि ऐसे लोग यह जान लें कि मनुष्य के अंदर चेतना के भौतिक स्तर के अतिरिक्त प्राणिक , मानसिक और आत्मिक स्तर भी होते हैं तो वे लोग अपनी भौतिक और प्राणिक मांगों को पूरा करने के लिए यानि धन , ऐश्वर्य , सत्ता को हासिल करने के लिए राजनीति में नहीं आएंगे। भारत में आज इतनी गिरावट होने के बावजूद भी ऐसे आत्मसचेती लोग विद्यमान हैंऔर भारत को गन्दी राजनीति की दलदल से निकालने के लिए उन्हें आगे आना चाहिए।”……(continued)
“राजनीति एक गरिमा पूर्ण सेवा बन सकती है : लेकिन राजनीति एक व्यवसाय नहीं है। राजनीति मानव समाज को नियन्त्रित करने का और उसे किन्ही आदर्शों की ओर ले जाने का सबसे ताकतवर यन्त्र है। राजनीति और राजसत्ता ऐसे सामाजिक यन्त्र हैं जिनका भारतवासी आगामी विकास की मंजिल को हासिल करने में उपयोग कर सकते हैं। यदि राजनीति को किन्ही उदात्त लक्ष्यों को हासिल करने का साधन बना लिया जाये तो राजनीति एक गौरवपूर्ण सेवा ही नहीं बल्कि उच्चतम कोटि के इंसानों का एक गरीमापूर्ण और साहसिक प्रयत्न बन सकती है।” ….. (continued)
The Party advocated that India should come out of her decades-old stupor of corrupt rule; put her national house in order by making a fair approach to safeguard the economic interests of India as a nation, of the weak and the exploited lot, and by showing her example of a path that was better than the proposed one, was progressive in nature and just to the exploited and agonizing people’s world over.
The Party’s clear stand was that its ideology should explain to the humanity in plain and simple way that her evolutionary destination was of a supra-human nature and not of a degrading consuming animal. The Party held the opinion that this path towards life’s evolutionary destination passed through the check-posts of social justice, economic justice, and real democracy of the poor people of a country who are always in majority.
The Party held the position that in a democracy the majority should over-rule the minority to resolve the irreconcilable differences and that majority consisted in poor, uneducated and exploited lot of any country, while the rich and moneyed-men were in minority. ….. (continued)
Finally, it was decided that the party should bring out a comprehensive and objective document dealing with these subjects: ….(continued)
The party notes with satisfaction that the scope, depth and concerns of this document {Vision Document} reflect the genuine aspirations of the people of India in particular and the Peoples living in different countries of the world in general.
This document also brings out to the fore that India as a country has the potential to lead a world-wide spiritual revolution, only if she is steered onto the correct path. ….(continued)
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