प्रभात कुमार रॉय
भारतीय सेना और उसके जवानों-अफसरों के विरुद्ध बिना किसी ठोस तथ्यात्मक प्रमाणों के, कुछ भी अनाप-शनाप प्रलाप करते रहना, आज की दिशाहीन राजनीति और सनीखेज मीडिया का एक शगल सा बन गया है.
हाल ही में इतिहासकार और लेखक पार्थ चटर्जी ने वॉयर बेबसाइट पर अपने एक लेख में भारतीय सेना के कमांडर-इन-चीफ विपिन रावत की तुलना जनरल डॉयर के साथ कर डाली है. यह वही जनरल डॉयर था कि जिसने कि 1919 में अमृतसर के जलियांवाला बाग में निर्मम हत्याकांड अंजाम दिया था. कांग्रेस के लीडर और पूर्व सासंद संदीप दीक्षित तो सारी हदों को ही पार कर गए और कमांडर-इन-चीफ विपिन रावत की भाषा को सड़क के किसी गुंडे की भाषा करार दे बैठे.
तो क्या फिर संदीप दीक्षित पाक आईएसआई द्वारा पोषित पथ्थरबाजों के लिए फूलों के हार लिए बैठे हैं?
संदीप दीक्षित अब कितनी भी माफी क्यों ना मांग ले, उनका जहरीला तीर तो कमान से बाहर निकल चुका है! कांग्रेस पार्टी ने तत्काल ही अपने लीडर के बेहूदा बयान से फौरन ही अपना दामन छुड़ा लिया, अन्यथा कांग्रेस पार्टी की बड़ी फजीहत हो जाती.
फॉरेन फंडिग पर पोषित और पल्लवित मानवाधिकार संगठनों के कथित पैरोकारों ने भारतीय सेना और उसके कमांडर-इन-चीफ के विषय में इस तरह के बेशर्म और बेहूदा अल्फाजों का इस्तेमाल करने का कदापि दुस्साहस नहीं किया है, जैसा निर्लज्जतापूर्ण दुस्साहस और गुस्ताख शब्दों का प्रयोग पार्थ चटर्जी और संदीप दीक्षित द्वारा किया गया.
भारतीय सेना और उसके कमांडर-इन-चीफ के विरुद्ध आयद किए जा रहे बेबुनियाद इल्जामों को मीडिया द्वारा भी बड़ी ही बेशर्मी से उछाला गया है.
कश्मीर घाटी के महज चार दक्षिणी जिलों में जारी जेहादी उपद्रव को संपूर्ण जम्मू-कश्मीर की सरजमीन के विद्रोह के तौर पर प्रचारित करके मीडिया द्वारा अपनी आडंबरपूर्ण और सनसनीखेज भूमिका को बखूबी निभाया गया है.
अंतरराष्ट्रीय जेहादी आतंकवाद के विरुद्ध कश्मीर घाटी में भारतीय सेना ने वर्ष 1990 से वस्तुतः एक अत्यंत जटिल और निर्मम युद्ध जारी रखा है. भारतीय सेना पर वर्ष 1990 से ही संगीन इल्जाम आयद किए जाते रहे हैं, जब से कुटिल और नृशंस आतंकवादियों से निपटने के लिए भारतीय सेना को आर्मड फोर्स स्पेशल पॉवर एक्ट से लैस किया गया है. भारतीय सेना के जवानों और अफसरों के विरुद्ध प्रायः सामूहिक बालात्कार अंजाम देने और बेगुनाह नागरिकों का कत्ल-ओ-गारद करने का इल्जाम आयद किए जाता रहा है.
भारत एक लोकतांत्रिक राष्ट्र है, जहां कि स्थानीय, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मीडिया के लिए सदैव पूरी आजादी कायम रही कि वह कहीं भी जाकर तल्ख से तल्ख सच्चाई को दुनिया के समक्ष प्रस्तुत कर सकती है. भारत में सदैव ही तथ्यों को ढ़कना और छुपाना नामुमकिन सा काम रहा है.
विदेशी फंडिग के तहत काम करने वाले मानवाधिकारों के कथित पुरोधागण भारतीय सेना पर संगीन इल्जाम तो निरंतर ही आयद करते रहे हैं, किंतु वास्तविकता के धरातल पर भारतीय सेना के विरुद्ध अभी तक कुछ भी ठोस और प्रमाणिक तौर पर साबित नहीं कर सके हैं. जब कभी भारतीय सेना के जवानों और अफसरों द्वारा कोई भी संगीन अपराध अंजाम दिया गया है, उसी वक्त, उनको तत्काल प्रभाव से सैन्य कानून द्वारा कठोरतम सजाएं प्रदान की गई.
ज्वलंत उदाहरण के लिए कश्मीर घाटी में माचिल एंकाऊंटर केस को सैन्य इंकवारी कमीशन द्वारा फर्जी एंकाऊंटर करार दिया गया था और सेना के छः अफसरों को सेना से बर्खास्त करके आजीवन कारावास की सजा प्रदान की गई.
भारतीय सेना में कुल मिलाकर तकरीबन 13 लाख जवान और अफसर तैनात हैं, जिनमें से कभी कहीं कोई जवान अथवा अफसर संगीन अपराध अंजाम दे सकता है, किंतु इसके लिए समस्त सेना और उसके अफसरों को कटघरे में खड़ा करना केवल बेहूदगी और बेशर्मी से लबरेज कुटिलता ही करार दी जा सकती है.
जनतांत्रिक आजादी का मतलब यकीनन बेबुनियाद झूठ और फरेब प्रचारित करना नहीं है.
भारतीय सेना के कमांडर-इन-चीफ विपिन रावत को जनरल डॉयर के समकक्ष खड़ा करना इतिहासकार पार्थ चटर्जी का फरेबी विश्लेषण नहीं है तो और फिर क्या है. पाक हुकूमत के झूठे और फरेबी प्रचार प्रसार में सुर में सुर मिलाकर और जनरल विपिन रावत को जनरल डॉयर करार देकर पार्थ चटर्जी आखिरकार कौन सा किरदार निभाना चाहते हैं?
समस्त संसार के समक्ष मानवाधिकारों के फरेबी पैरोकारों का भारतीय सेना के विरुद्ध झूठा प्रचार अनेक बार दुनिया के समक्ष बेनकाब हो चुका है.
वास्तविकता के धरातल पर भारतीय सेना के जवानों और अफसरों विरुद्ध आयद किए गए 96 फीसदी इल्जाम एकदम झूठे सिद्ध हुए हैं. कुल मिलाकर 1106 रिपोर्टेड मामलात में आयद किए इल्जामों की तफसील के साथ तहकीकात की गई, जिनमें से मात्र 30 मामलात में आयद किए गए इल्जाम सही पाए गए और कोर्ट द्वारा 112 सैन्य मुलजिमों को सजा प्रदान की गई. इन सजायाफ्ता मुलजिमों में 41 सैन्य अफसर भी शामिल हैं. सैन्य कानून के तहत आयद किए गए प्रत्येक संगीन इल्जाम की तहकीकात तफसील से अंजाम दी जाती है और प्रथम दृष्टया इल्जाम सही पाए जाने पर तत्काल मुलजिम को गिरफ्तार करके उसका कोर्ट मार्शल किया जाता है.
भारतीय सेना एक जनतांत्रिक राष्ट्र के संविधान के तहत काम करने वाली सेना है, जोकि फॉसीवाद के किसी भी जालीमाना लक्षण से पूर्णतः मुक्त रही है. कश्मीर घाटी में सैलाब में भारतीय सेना की सेवाओं को इतनी जल्द विस्मृत कर दिया गया है और घाटी में जेहादी आतंकवादियों के विरुद्ध जारी सशस्त्र कार्यावाही पर इतना बेमतलब का बबाल मचाया जा रहा है. जबकि जेहादी आतंकवाद से अभिशप्त दुनिया के तमाम देश कठोरतम सैन्य कार्यवाही करने के लिए विवश हुए है.
वर्ष 2001 में 9-11 को न्यूयार्क ट्रेड सैंटर पर आक्रमण के तत्पश्चात तो जेहादी आतंकवाद का कहर समस्त विश्व में एक बड़ा मसअला बन चुका है, किंतु भारतीय सुरक्षा बलों ने तो वर्ष 1988 से कश्मीर घाटी में अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद का निर्मम तौर पर सामना किया है.
कश्मीर में पाक आईएसआई और अमेरिकन सीआईए द्वारा कश्मीर की आजादी का नारा बुलंद करने वाली तंजीम जेकेएलएफ द्वारा संचालित आतंकवाद का पुश्तपनाही और परिपोषण किया गया था. आतंकवाद की बहशियाना बर्बरता के कारणवश तकरीबन तीन लाख ब्राह्मणों को कश्मीर घाटी से पलायन करने के लिए विवश होना पड़ा था.
इसके पश्चात सोवियत सेनाओं की अफगानिस्तान से वापसी के तत्पश्चात तो पाक फौज द्वारा जालीम और बर्बर आतंकवादी तालीबान को अफगानिस्तान सत्तानशीन कराया गया और जेकेएफएफ के स्थान पर हिजबुल मुजाहिदीन को प्रश्रय प्रदान किया गया जो कि कश्मीर का पाकिस्तान में विलय करने का अहद लेकर जेहादी जंग में उतरा था. कश्मीर घाटी में भारतीय सेना ने कदापि बर्बरता और नृशंसता प्रर्दशित नहीं की है अपितु आतंवादियों ने बेगुनाह नागरिकों को अपना निशाना बनाया है जिसका सबसे बड़ा उदाहरण ब्राह्मणों का लाखों तादाद में कश्मीर घाटी से पलायन हुआ था जोकि आजतक पनाहगुजीन शिवरों में अपनी जमीन और आसमान के लिए तरस रहे हैं
(पूर्व सदस्य नेशनल सिक्यूरिटी एडवाइजरी कॉऊंसिल)
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