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होली और पानी –एक हमला पानी के नाम पर

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प्रभात गुप्त

होली खेलने वालों से अपील है कि जम कर होली खेलिए, दो दिन पहले से खेलिए। जो आपको रोके उसको पटक कर होली खेलिए।

ये जो पानी बचाने की बातें हैं, इसका पर्यावरण के बचाव से कोई लेना देना नहीं है। ये हमारी संस्कृति पर हमला है। और ये मैं एक दम सीधे शब्दों में कह रहा हूँ। अगर आप पानी की चिंता करने में होली नहीं खेलेंगे, तो अगले साल का कैम्पेन होगा कि रंग फैक्ट्रियों में बच्चे बनाते हैं, इसीलिए रंग से होली ना खेलें।

और एक दिन आपके हाथों से वो किताब भी छीन ली जाएगी जिसमें हिरण्यकश्यपु का ज़िक्र है, और होलिका का। फिर आपके पोते भूल जाएँगे कि होली क्या थी।

होली हिन्दुओं का बीते साल के बीतने और नए साल के आगमन का जश्न है। ये हमेशा याद रखिए नहीं तो न्यू ईयर पर पटाखे छोड़ते रहेंगे और दीवाली में प्रदूषण होता रहेगा।

होली में छेड़छाड़ ना करें, लेकिन होली ज़बरदस्त खेलें। ख़ूब पानी बहाएँ, ख़ूब रंग बहाएँ। जहाँ संस्कृति और धर्म की बात है, वहाँ एकदम पीछे नहीं हटना है। जिस दिन लोग अपनी गाड़ियाँ धोना बंद कर देंगे, ब्रश करते वक़्त नल बंद रखेंगे, नहाते वक़्त बाल्टी का प्रयोग करेंगे, उस वक़्त में ज़्यादा ख़ुश होऊँगा।

होली एक दिन के लिए आती है। इसे खेलना ज़रूरी है। मैं तो कहता हूँ पूरे सप्ताह खेलिए क्योंकि कुछ लोगों को ये बताना ज़रूरी है कि देश में होली मनाने वाले मरे नहीं हैं, ज़िन्दा हैं।


Filed under: Contemporary World

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