श्री अरविन्द (1872-1950) ब्रीटिस-राज से भारत की आजादी की लडाई मे एक प्रसिद्ध क्रान्तिकारी, 20वी सदी के प्रर॔भिक वर्षों (1900 – 1910) के एक महान राष्ट्रीय नेता और, इन सबसे अधिक, एक महायोगी और ॠषि थे। प्रारंभिक वर्षो मे उनका लालन पालन और शिक्षा दिक्षा उनके पिता द्वारा जानबूझ कर इंगलैंड मे की गई थी ताकि उन्हे भारत के प्रभाव और भारतीय विचारो से दूर रखा जा सके और वे पश्चिमी मूल्यो, जीवन पद्धीति और सोच-विचार को ग्रहण कर सकें। जब वह इंगलैन्ड मे थे तो उन्होने लैटिन और अंग्रेजी भाषाओ और साहित्य मे पारंगतता प्राप्त की और 21 वर्ष की कम आयु मे मुश्किल समझा जाने वाला आइ सी एस (जो आज के आइ ए एस के बराबर था) मे स्थान हासिल किया; लेकिन वे जानबूझ कर घुडसवारी की जरूरी परीक्षा मे नही बैठे और भारत मे ब्रिटेन की सेवा करने से इंकार कर दिया। भारत आने के बाद उन्होने भारतीय भाषाए और साहित्य का अध्ययन किया और आजादी के लिए क्रांतिकारी संघर्ष मे हिस्सा लिया। उनकी क्रांतिकारी राजनैतिक गतिविधियो के कारण अंग्रेज सरकार ने उनको गिरफ्तार कर लिया और जेल की तन्हा कोठरी मे डाल दिया। वहां उनको दिव्य दर्शन हुए और ईश्वर के आदेश पर उन्होने अपने आप को ईश्वर की इच्छा और ईश्वर के कार्य के लिए समर्पित कर दिया। वहां पर भारत के लिए उनको ईश्वर से एक सन्देश प्राप्त हुआ जिस (सन्देश) को उन्होने ब्रीटिस जेल से बाहर आने के बाद 30 मई 1909 को उत्तरपाडा नामक स्थान पर विस्तार से बताया। इसे श्री अरविंद का उत्तरपाडा का भाषण कहा जाता है। जो इस भाषण मे कहा गया है वह यह दर्शाता है कि उनका दिव्यता से साक्षातकार हुआ था और वे लगातार उसके सानिध्य मे रहते थे, जिसे हम ईश्वर, भगवान, श्री कृष्ण, नारायण और दूसरे हजारो नामो से जानते हैं। श्री अरविन्द भारत के बारे ईश्वर का संदेश देते हैं, जो भारत के बारे मे उनकी भविष्यवाणी कही जा सकती है। जो संदेश उन्होने उत्तरपाडा मे दिया था वह हम यहां नीचे दे रहे हैं। यह भाषण अंग्रेजी मे है जिसका हिन्दी अनुवाद श्रीपाल सिंह ने किया है।
जब मुझे आपकी सभा की इस सालाना बैठक मे बोलने के लिए कहा गया तो मेरा इरादा आज के चुने हुए विषय – हिन्दू धर्म – के बारे मे आपसे कुछ शब्द कहने का था। मै नही जानता कि क्या अब मै उस इरादे को पूरा कर पाउंगा; क्योंकि जैसे ही मै यहां बैठा, तो मेरे मस्तिष्क मे एक शब्द आया कि मुझे यह बोलना है, एक शब्द जो मुझे तमाम भारतीय राष्ट्र को बोलना है। यही (शब्द) मुझे पहली बार जेल मे बोला गया था और अपने लोगों से इसी (शब्द) को बोलने के लिए मै जेल से बाहर आया हूं।
एक साल से भी ज्यादा समय हो गया है जब मै पिछली बार यहां आया था। जब मै आया था तो मै अकेला नही था; राष्ट्रवाद के सबसे ताकतवर मसीहों मे से एक (= बीपिन पाल) मेरे साथ बैठा था। वह ही था जो तब उस अकेलेपन (= जेल) से बाहर आया था जहां ईश्वर ने उसे भेजा था, ताकि वह अपनी जेल कोठरी की एकाकी और निशब्दता मे उस शब्द को सुन सके जो उसे (ईश्वर को) उससे कहना था। वह ही था जिसका स्वागत करने को सैंकडो की तादाद मे आप आये थे। अब वह बहुत दूर है, हमसे हजारो मील के फासले पर है। दूसरे जिनको मै अपने बराबर मे काम करते हुए देखने का आदि था मोजूद नही हैं। देश मे छाये झंझावात ने उनको जगह-जगह दूर तक फेंक दिया है।
इस बार मै हूं जिसने एक साल अकेलेपन मे बिताया है, और अब जब मैं (जेल से) बाहर आया हूं तो देखता हूं कि सब कुछ बदल गया है। वह जो हमेशा मेरे साथ बैठता था और मेरे काम मे साथ जुडा हुआ था बर्मा मे कैदी है; दूसरा उत्तर मे बन्दी होकर सड रहा है। (जेल से) बाहर आने पर मैने चारो तरफ देखा, मै उनको तलाशने लगा जिनको मै सलाह लेने और प्रेरणा पाने के लिए देखने का आदि था। वे मुझे नही मिले।
इससे भी अधिक और था। जब मै जेल गया था तो सारा देश बन्दे मातरम के उदघोष से जिवंत था, एक देश की आशा से परिपूर्ण था, उन लाखों लोगों की (आशा से परिपूर्ण था) जो पतन से नये नये जागे थे। जब मै जेल से बाहर आया तो उस उदघोष को सुनना चाहा, पर उसके स्थान पर सन्नाटा छाया हुआ था। देश मे एक चुप्पी छा गई थी और लोग हक्के-बक्के से लग रहे थे; क्योंकि भविष्य की दृष्टि से पूर्ण ईश्वर का एक रोशन जो स्वर्ग हमारे सामने था उसके स्थान पर एक काला आकाश दिख रहा था जहां से मानवीय गाज और गर्जना बरस रही थी। कोई भी आदमी यह जानने वाला नही लग रहा था कि किस ओर कदम बढाया जाये, और चारो तरफ से सवाल आया, “आगे हम क्या करे? वह कौन सी चीज है जो हम कर सकते हैं?”
मुझे भी मालूम नही था कि किस ओर कदम बढाए जायें, मुझे भी मालूम नही था कि आगे क्या करना है। लेकिन मुझे एक चीज मालूम थी, कि यह ईश्वर की शक्ति ही थी जिसने वह उदघोष किया था, वह आशा जगाई थी, इस लिये वह शक्ति ही है जिसने यह सन्नाटा पसेरा है। वही जो उस हो-हल्ले और गति मे मौजूद था इस ठहराव और चुप्पी मे भी मौजूद है। उसने इसे हम पर भेजा है ताकि राष्ट्र एक क्षण के लिए पीछे हट सके और अपने अन्दर झांक सके और उस (ईश्वर) की इच्छा जान सके।
मैं उस चुप्पी से हतोत्साहित नही हुआ हूं क्योकि मेरी जेल मे मुझे चुप्पी से वाकिफ कराया गया था और क्योकि मै जानता था कि यह ठहराव और चुप्पी ही थी जिसमे अपने साल भर के लम्बे कारावास के द्वारा मैने स्वय॔ यह सबक सीखा था। जब बीपिन चन्द्र पाल जेल से बाहर आये, तो वह एक सन्देश के साथ आये, और वह एक प्रेरणा दायक सन्देश था। मुझे वह भाषण याद है जो उसने यहां दिया था। अपने मायने और मंशा मे वह भाषण इतना राजनैतिक नही था जितना कि धार्मिक। उन्होने जेल मे अपने आन्तरिक अनुभव, हम सबके अन्दर ईश्वर, राष्ट्र के अन्दर ईश्वर के बारे मे बताया, और बाद वाले भाषणो मे भी उन्होने बताया कि आन्दोलन मे एक महान शक्ति काम कर रही है ना कि एक सामान्य शक्ति और उस (आन्दोलन) के सामने एक महान मकसद है ना कि सामान्य।
अब मैं भी फिर आपसे मिल रहा हूं, मैं भी जेल से बाहर आया हूं, और फिर से आप उत्तरपाडा वासी ही हो जो मेरा सर्व प्रथम स्वागत कर रहे हो, एक राजनैतिक सभा में नही बल्कि हमारे धर्म की रक्षा के लिए एक समीति की एक सभा मे। वह सन्देश जो बीपिन चन्द्र पाल को बक्सर जेल मे मिला, ईश्वर ने मुझे अलिपुर मे दिया। उस ज्ञान को उस (ईश्वर) ने मेरे बारह महीने के कारावास के दौरान मुझे एक एक दिन करके दिया और अब जब मैं (जेल से) बाहर आया हूं तो उस (ईश्वर) ने मुझे उसी (ज्ञान) को आपको बताने का आदेश दिया है।
मैं जानता था कि मैं (जेल से) बाहर आउंगा। कारावास के साल का एकमात्र उद्देश्य एक साल का एकांतवास और प्रशिक्षण के लिए था। कोई भी मुझे उससे अधिक समय तक कैसे जेल मे रख सकता था जितना कि ईश्वर के उद्देश्य के लिए जरूरी था? उस (ईश्वर) ने मुझे एक शब्द (संदेश) कहने के लिए और एक काम करने के लिए दिया था और मैं जानता था कि जब तक वह शब्द न बोला जाये कोई भी ईंसानी ताकत मुझे चुप नही रख सकती, जब तक वह काम पूरा न हो जाये कोई भी ईंसानी ताकत ईश्वर के यंत्र को रोक नही सकती, चाहे वह यंत्र कितना भी कमजोर या छोटा हो।
अब जब मैं (जेल से) बाहर आ गया हूं, इन चन्द मिनटो मे भी, मुझे एक शब्द सुझाया गया है जिसके बारे मे बोलने की मेरी इच्छा नही थी। जो बात मेरे दिमाग मे थी उसको उस (ईश्वर) ने इससे बाहर फेंक दिया है और जो मैं बोल रहा हूं वह एक प्रेरणा और एक विवशता के कारण बोल रहा हूं।
जब मैं गिरफ्तार हुआ और फुर्ती से लाल बाजार हाजत ले जाया गया तो थोडी देर के लिए मेरा विश्वास हिल गया, क्योंकि मै उस (ईश्वर) के ह्रदय की इच्छा में नही झांक सका था। इसलिए मै एक क्षण के लिये डगमगा गया और मैने अपने ह्रदय मे उस (ईश्वर) को पुकारा , “वह क्या है जो मेरे साथ हुआ है? मेरा विश्वास था कि मेरा मिशन अपने देश के लोगो के लिए काम करना है और जब तक वह काम पूरा नही होता तब तक मुझे तेरी सुरक्षा मिलेगी। तब फिर मैं यहां क्यों हूं और वह भी इस इल्जाम में?”
एक दिन गुजर गया और एक दूसरा दिन और एक तीसरा, जब मेरे भीतर से मुझे एक आवाज आई, “इंतजार करो और देखो”। तब मेरे अन्दर शांति छा गई और मैंने प्रतिक्षा की, मुझे लाल बाजार से अलिपुर ले जाया गया और एक महीने के लिए मनुष्यो से अलग एक तन्हा कोठरी मे रख दिया गया। वहां मैने दिन और रात अपने अन्दर ईश्वर की वाणी का इंतजार किया, यह जानने के लिए कि (वह) क्या है जो वह (ईश्वर) मुझसे कहेगा, यह सीखने के लिए कि मुझे क्या करना होगा।
इस एकांतवास मे मेरा सबसे पहला आन्तरिक अनुभव, पहला पाठ आया। तब मुझे याद आया कि मेरी गिरफ्तारी से एक महिना या और अधिक पहले, सारी गतिविधियो को एक तरफ रख देने के लिए, एकान्तवास मे जाने और अपने भीतर देखने के लिए एक आदेश आया था, ताकि मैं उस (ईश्वर) से निकटतर एकात्म स्थापित कर सकूं। मैं कमजोर था और आदेश स्वीकार नही कर सका। अपना काम मुझे बहुत प्रिय था और मैं अपने दिल के घमंड मे यह सोचता था कि यदि मै इसमे न रहा, तो इसको नुकसान होगा या यहां तक कि यह असफल और खत्म भी हो सकता है; इसलिए मै इसको नही छोड सकता था।
मुझे लगा कि वह (ईश्वर) मुझसे फिर बोला और कहा, “जिन बन्धनों को तुम मे तोडने की ताकत नही थी, मैने तुम्हारे लिए तोड दिया है, क्योंकि यह मेरी इच्छा नही है ना ही कभी मेरा यह इरादा रहा कि यह (काम) चलता रहे। तुम्हारे करने के लिए मेरे पास दूसरी चीज थी और मै तुम्हे इसके लिए, तुम्हे वह सिखाने के लिए जो तुम खुद नही सीख सके और मेरे काम का प्रशिक्षण देने के लिए ही यहां लाया हूं।”
तब उस (ईश्वर) ने मेरे हाथों मे गीता रख दी। उस (ईश्वर) की ताकत मेरे अन्दर प्रवेश कर गई और मैं गीता की साधना कर सका। मुझे यह बौद्धिक रूप मे ही नही समझना था बल्कि अपने अन्दर अनुभव भी करना था कि श्री कृष्ण ने अर्जुन से क्या मांग की थी और वह (ईश्वर) उनसे क्या मांग करते हैं जो उस (ईश्वर) का काम करने की अभिलाषा रखते हैं, अरुचि और इच्छा से मुक्त रहना, बिना प्रतिफल की मांग किये उस (ईश्वर) का काम करना, अपनी खुद की इच्छा को त्याग देना और उस (ईश्वर) के हाथ मे एक स्वीकृति पूर्ण और विश्वसनीय यंत्र बन जाना, उत्थान और पतन मे एक समान ह्रदय का भाव रखना, मित्र और विरोधी (के प्रति), सफलता और असफलता (मे), फिर भी उस (ईश्वर) के काम मे लापरवाही से न करना।
हिन्दू धर्म का क्या अर्थ है यह मैने अपने अन्दर अनुभव किया। हम हिन्दू धर्म की, सनातन धर्म की, अक्सर बात करते है, लेकिन हम मे से थोडे ही वास्तव मे यह जानते हैं कि उस थर्म का क्या मायना है। दूसरे धर्म प्रमुख तौर पर विश्वास और पेशे के धर्म हैं, लेकिन सनातन धर्म स्वय॔ जीवन है; यह एक ऐसी चीज है जो विश्वास करने से ज्यादा (जीवन मे) जी जाती है। यही धर्म है जो मानव जाति की मुक्ति के लिए प्राचीन समय से इस प्रायद्वीप के एकान्त मे पोषित किया गया था। भारत इस धर्म को देने के लिए ही जाग रहा है। वह ऐसे नही उठता जैसे दूसरे देश करते हैं, अपने लिए या जब वह ताकतवर हो तो कमजोर को कुचल देने के लिए। वह जाग रहा है अमर प्रकाश को दुनिया के ऊपर फैलाने के लिए जो उसे सौंपा गया था। भारत सदैव से मानव जाति के लिए जिया है और अपने लिए नही और यह उसके लिए नही है कि वह महान हो। इसलिए यह अगली चीज थी जिसकी ओर उस (ईश्वर) ने इशारा किया, – उस (ईश्वर) ने मुझे हिन्दू धर्म की केन्द्रीय सच्चाई का अनुभव कराया।
उस (ईश्वर) ने मेरे जेलरो का दिल मेरी तरफ मोड दिया और उन्होने जेल के अंग्रेज नियंत्रणकर्ता से कहा, “वह अपने बन्धन से कष्ट मे है; उसे कम से कम आधा घंटा सुबह और शाम अपनी कोठरी के बाहर घूमने दें”। इस तरह यह इंतजाम हुआ, और जब मै घूम रहा था तो उस (ईश्वर) की शक्ति एक बार फिर मेरे भीतर प्रवेश कर गई। मैने जेल की तरफ देखा जिसने मुझे मनुष्यो से अलग किया हुआ था और वहां अब उसकी ऊंची दीवारें नही थी जिसमे मै कैद था; नही, वह तो मेरे चारो ओर वसुदेव (श्रीकृष्ण) थे। मैं अपनी कोठरी के सामने बाहर वृक्ष की शाखाऔ के नीचे टहल रहा था लेकिन वह वृक्ष नही था, मै जानता था ये वसुदेव थे, वे श्री कृष्ण थे जो वहां खडे थे और मेरे ऊपर अपनी छाया किये हुए थे। मैने अपनी कोठरी के सींखचो की तरफ देखा, वही सींखचे जो एक दरवाजे का काम किया करते थे और फिर से मैने वसुदेव को देखा। वे नारायण (ईश्वर) ही थे जो मेरी रक्षा कर रहे थे और मेरे पहरेदार बने हुए थे। या मैं खुरदरी रजाई पर लेटा हुआ था जो मुझे लेटने के लिए दी गई थी और मैने श्री कृष्ण की बाहें अपने चारो ओर महसूस की, मेरे (ईश्वरीय) मित्र और (ईश्वरीय) प्रेमी की बाहें। यह उस गहरी द्रष्टि का पहला उपयोग था जो उस (ईश्वर) ने मुझे दी थी।
मैने जेल के कैदियों, चोरों, कातिलों, ठगों की तरफ देखा, और जब मैने उनकी ओर देखा तो मैने वसुदेव को देखा, वे नारायण ही थे जिनको मैने इन कालिख बनी हुई आत्माऔ और दुरुपयोग की गई देहों मे पाया। इन चोरो और डकैतो की बीच मे कई सारे ऐसे थे जिनके सौहार्द, जिनकी दयालुता, ऐसी प्रतिकूल परिस्थितियो मे उनमे मानवता की विजय ने मुझ अपने को शर्मसार कर दिया। उनमे से एक मैने विशेष तौर पर देखा, जो मुझे सन्त लगा, मेरे देश का एक किसान जो लिखना पढना नही जानता था, दस साल का कठोर कारावास का दन्ड पाये हुए और एक कथित डकैत, उनमे से एक जिनको हम रूढीवादी वर्ग के लोग घमंड मे नीचे छोटालोक समझते हैं।
एक बार फिर वह (ईश्वर) मुझसे बोला और कहा, “उन लोगों को देखो जिनके बीच मैने तुम्हे अपना एक छोटा सा काम करने को भेजा है। राष्ट्र का यही स्वभाव है जिसको मैं ऊपर उठा रहा हूं और यही कारण है कि मैं उनको जाग्रत कर रहा हूं।”
जब केस की निचली अदालत मे सुनवाई शुरू हुई और हमे मजिस्ट्रेट के सामने लाया गया तो वही अन्तर द्रष्टि मेरे साथ होती रही। उस (ईश्वर) ने मुझसे कहा, “जब तुम्हे जेल मे डाल दिया गया था , क्या तुम्हारा दिल नही टूट गया था और क्या तुमने मुझे नही पुकारा था, कि तेरी सुरक्षा कहां है? अब मजिस्ट्रेट को देखो ,अब सरकारी वकील को देखो “। मैने देखा और वह मजिस्ट्रेट नही था जो मैने देखा था वह वसुदेव थे, वह वसुदेव थे, जो वहां बैंच पर बैठे थे। मैने सरकारी वकील की ओर देखा और जो मैने देखा था वह सरकार का वकील नही था; वे श्री कृष्ण थे जो वहां बैठे थे, वह मेरा (ईश्वरीय) मित्र और प्रेमी था जो वहां बैठा और मुस्करा रहा था।
“क्या अब भी तुम्हें डर लगता है?” उस (ईश्वर) ने कहा, “मैं सब मनुष्यों मे हूं और मै उनके कार्यों और उनके शब्दों का नियंता हूं। तुम अभी भी मेरी सुरक्षा मे हो और तुम्हे डर नही लगेगा। इस मुकदमा को जो तुम्हारे खिलाफ लाया गया है, मेरे हाथ मे छोड दो। यह तुम्हारा काम नही है। यह ट्रायल नही है जिसके लिए मै तुम्हे यहां ले कर आया हूं बल्कि कोई दूसरी चीज है। यह मुकदमा मेरे काम के लिए एक साधन है और उससे अधिक कुछ नही”।
बाद मे जब सेशन्स कोर्ट मे मुकदमा शुरू हुआ, तो मैने अपने वकील के लिए बहुत से निर्देश लिखने शुरू कर दिये कि मेरे खिलाफ सबूत मे क्या क्या बात झूठी है और कौन से विन्दुओ पर गवाहो से जिरह की जा सकती है। तब ऐसा कुछ घटित हो गया जिसकी मुझे उम्मीद नही थी। वे इंतजाम जो मेरे बचाव के लिए बनाये गये थे एकाएक बदल गये और एक दूसरा वकील मुझे बचाने के लिए वहां खडा था। वह बिना किसी उम्मीद के आ गया, – वह मेरा मित्र था पर लेकिन मुझे नही पता था कि वह आ रहा है। तुम सबने वह नाम सुना है जिसने और सब विचार अपने से दूर कर दिये और अपनी सारी वकालत छोड दी, जो महीनो तक प्रतिदिन आधी आधी रात तक बैठा रहा और मुझे बचाने किए अपना स्वास्थ्य खराब कर लिया, – श्रीयुत चितरंजन दास।
जब मैने उन्हे देखा, मै सन्तुष्ट हो गया, लेकिन तब भी निर्देश लिखना मैने जरूरी समझा। तब वह सब मुझसे दूर कर दिया गया और मुझे अपने अन्दर से सन्देश प्राप्त हुआ, “यही आदमी है जो तुम्हे उन फंदो से बचायेगा जो तुम्हारे पैरो के चारो तरफ डाल दिये गये है। उन कागजो को दूर रख दो। तुम्हे उसे निर्देश नही देना है। मै उसे निर्देश दूंगा।”।
उस समय के बाद से मैने अपनी तरफ से (यानि खुद से) एक शब्द भी अपने केस के बारे मे अपने वकील से नही कहा या एक भी निर्देश नही दिया, और यदि कभी मुझसे कोई सवाल पूछा गया, मैने हमेशा यह पाया कि मेरे जवाब से मेरे केस को कोई फायदा नही हुआ। इसको मैने उसके (वकील के) ऊपर छोड दिया और उसने इसे पूरी तरह अपने हाथो मे ले लिया, इसका क्या तनीजा निकला यह आप जानते हैं।
मुझे लगातार पता था कि वह (ईश्वर) मेरे लिए क्या चाहता है, क्योकि इसे मैने बार बार सुना, मैने हमेशा अपने अन्दर से आवाज सुनी; “मै मार्ग-दर्शन कर रहा हूं, इसलिए डरो मत। अपने काम मे लगो जिसके लिए मै तुम्हे जेल मे लाया हूं और जब तुम बाहर आ जाओ, याद रखो कभी भी डरना नही है, कभी भी हिचकिचाना नही है। याद रखो कि यह मै (ईश्वर) हूं जो यह कर रहा हूं, तुम नही और ना ही कोई और। इसलिए कोई भी बादल (दिक्कतें) आ जायें, कोई भी खतरें और मुसीबतें आ जायें, कोई भी मुश्किलें, कोई भी असम्भवता (असम्भव लगने वाली बात आ जाये), कुछ भी असम्भव नही है, कुछ भी मुश्किल नही है। मैं (ईश्वर) राष्ट्र मे हूं और यह उठ रहा है और मै वसुदेव हूं, मै नारायण हूं, और जो मैं चाहूंगा, वह होगा, ना कि वह जो दूसरे चाहेंगे। जिस घटना को घटित होने के लिए मैं चुनता हूं , कोई भी इंसानी ताकत उसे नही रोक सकती। “
इसी दौरान उस (ईश्वर) ने मुझे ऐकांत से बाहर निकाल लिया और उन लोगो के बीच मे रख दिया जो मेरे साथ अभियुक्त बनाये गये थे।
तुमने आज मेरे स्वय॔ के अपने बलिदान और देश के प्रति मेरी भक्ति के बारे मे बहुत कुछ कहा है। जब से मै जेल से बाहर आया हूं इस तरह के भाषण मैने बहुत सुने हैं, लेकिन यह सुन कर मुझे शर्मिंदगी होती है, एक तरह का दर्द होता है। क्योंकि मुझे अपनी कमजोरी का पता है, मै अपनी कमियो और स्वधर्म त्याग का शिकार हूं।
पहले भी मै उनको जानता था और जब वे मेरे एकान्तवास मे मेरे खिलाफ खडी हो गई तो मैने उन्हे पूरी तरह से महसूस किया। मै जानता था कि मै इंसानी कमजोरी से भरा एक इंसान था, एक दोषपूर्ण और अधूरा यंत्र था, केवल तभी मजबूत (था) जब एक उच्चतर शक्ति मुझमे प्रवेश कर गई। तब इन जवान लोगो के बीच मे मुझे अपने बारे मे पता चला और इनमे से कई मे मैने अदम्य साहस, स्वयं को मिटाने की शक्ति को पाया जिसके मुकाबले मे मै कुछ नही था। एक या दो मैने देखे जो न केवल ताकत और चरित्र मे मुझसे श्रेष्ठ थे, – ऐसे तो बहुत सारे थे – बल्कि उस बौद्धिक क्षमता मे (श्रेष्ठ थे) जिस पर मै अपने ऊपर गर्व करता था।
उस (ईश्वर) ने मुझसे कहा, “यही नयी पीढी है , नया और बलवान राष्ट्र है जो मेरे आदेश से जाग रहा है। वे तुमसे ज्यादा बडे हैं। तुम्हे किस बात का डर है? यदि तुम हट कर एक तरफ खडे हो गये या सो गये, कार्य तब भी पूरा होगा। यदि कल तुम एक तरफ हटा दिये गये, नौजवान लोग यहां मौजूद हैं जो तुम्हारा काम ले लेंगे और उसे तुम्हारी उस ताकत से कही ज्यादा करेंगे जितना तुमने कभी किया था। इस राष्ट्र को एक शब्द बोलने के लिए तुम्हे केवल कुछ शक्ति मुझसे प्राप्त हुई है जो इसको ऊपर उठने मे मदद करेगा।”
यह अगली चीज थी जो उस (ईश्वर) ने मुझसे कही।
तब एकाएक एक चीज घटित हो गई और एक क्षण मे मुझे जल्दी से तन्हाई की कोठरी के एकान्त मे ले जाया गया। उस दौरान मेरे साथ क्या घटित हुआ इसको कहने के लिए मै प्रेरित नही हूं, लेकिन बस इतना ही कि, उस (ईश्वर) ने मुझे प्रतिदिन अपने आश्चर्य दिखाए और हिन्दू धर्म के पूर्ण सत्य का मुझे अनुभव कराया। पहले मेरी बहुत सी शंकाएं थी। मै विदेशी विचारो और पूरी तरह से विदेशी वातावरण के बीच इंगलैंढ मे पला बढा था। एक बार पहले मेरा झुकाव यह विश्वास करने की ओर था कि हिन्दू धर्म की बहुत सी चीजे कल्पना थी, कि वे ज्यादातर स्वपन मात्र थे, अधिकांश भ्रम और माया थी। लेकिन अब दिन प्रति दिन मैने दिमाग मे, ह्रदय मे, शरीर मे हिन्दू धर्म की सत्यता को अनुभव किया। वे मेरे लिए जीवित अनुभव बन गई, और वे चीजे मेरे लिए खोल दी गुई जिनको कोई भी भौतिक विज्ञान समझा नही सकता था।
जब मेरा पहली बार उस (ईश्वर) से साक्षातकार हुआ तो वह पूरी तरह किसी ज्ञानी के भाव मे नही था। स्वदेशी (आन्दोलन) के शुरू होने के कुछ साल पहले और जब मै जन गतिविधियो की ओर खिंचा उससे बहुत पहले बडौदा मे मै उस (ईश्वर) के सम्पर्क मे आया था। उस समय जब मै ईश्वर के सम्पर्क मे आया था तो मेरा उस (ईश्वर) मे कोई आन्तरिक विश्वास नही था। मेरे अन्दर एक सशंयवादी था, एक नास्तिक था, एक शंकालु था और मै पूर्ण आश्वस्त नही था कि कही कोई ईश्वर भी होता है।
मैने उसकी मौजूदगी महसूस नही की थी। फिर भी कोई चीज मुझे वेदो की सत्यता, गीता की सत्यता, हिन्दू धर्म की सत्यता की ओर खींचती थी। मुझे लगता था कि इस योग मे कही न कही एक महान सत्य, वेदान्त पर आधारित इस धर्म मे एक महान सत्य होना चाहिए।
इसलिए जब मै योग की तरफ मुडा और यह पता करने के लिए इसका अभ्यास करने का निश्चय किया कि क्या मेरा विचार सही था, तो मैने यह इसी भावना और उस (ईश्वर) से इस प्रार्थना के साथ किया, “यदि तू है, तब तू मेरे दिल की बात जानता है। तू जानता है कि मै मुक्ति नही मांगता, मै वह कुछ भी नही मांगता जो दूसरे मांगते हैं। मै इस राष्ट्र को केवल ऊपर उठाने के लिए शक्ति मांगता हूं, मै केवल यह मांगता हूं कि मुझे इन लोगो के लिए जिन्दा रहने और काम करने दिया जाए जिन्हे मै प्रेम करता हूं और जिनके लिए प्रार्थना करता हूं कि मै अपना जीवन लगा सकूं।”
मैने लम्बे समय तक योग को सिद्ध करने का प्रयत्न किया था और अन्त मे मैने कुछ हद तक हासिल कर लिया था, लेकिन मुझ मे जिसकी सबसे अधिक चाहत थी उसमे मै सन्तुष्ट नही था। तब जेल के एकान्तवास मे, तन्हा कोठरी मे मैने इसको फिर से मांगा। मैने कहा, “अपना आदेश मुझे दीजिए। मुझे नही मालूम क्या करना या इसको कैसे करना है। मुझे एक सन्देश दीजिए।”
योग की संगति मे दो सन्देश आए। पहले सन्देश मे कहा, “मैने तुम्हे एक काम दिया है और यह इस राष्ट्र को ऊपर उठाने मे मदद करना है। जल्दि ही समय आयेगा जब तुम्हे जेल से बाहर जाना होगा; क्योंकि यह मेरी इच्छा नही है कि इस बार तुम्हे सजा मिले या अपने देश के लिए जो दूसरो को कष्ट उठाने हैं, उसमे तुम अपना समय गुजारो। मैने तुम्हे काम करने के लिए बुलाया है, यह वह आदेश है जो तुमने मांगा था। मै तुम्हे आगे बढने और मेरा कार्य करने का आदेश देता हूं।”
दूसरा सन्देश आया और इसने कहा, “इस वर्ष के ऐकांतवास मे तुम्हे कुछ चीजे दिखाई गई है, कुछ चीजे जिनके बारे मे तुम्हारी शंकाएं थी और यह हिन्दू धर्म की सत्यता है। इस धर्म को मै संसार के समक्ष ऊपर उठा रहा हूं ,यही है जिसको मैने पूर्ण किया है और ॠषियो, सन्तो और अवतारो के माध्यम से विकसित किया है, और अब यह राष्ट्रो के मध्य मे मेरा काम करने के लिए आगे बढ रहा है। मेरे शब्द को आगे पहुंचाने के लिए मै इस राष्ट्र को ऊपर उठा रहा हूं। यह सनातन धर्म है, यह अमर धर्म है जिसको तुम पहले वास्तव मे नही जानते थे, लेकिन जिसे अब मैने तुम्हें दिखाया है। तुम्हारे अन्दर के शंकालू और सन्देही को उत्तर दे दिया गया है, क्योंकि मैने तुम्हारे अन्तर्तम और बाह्य में,भौतिक और आत्मपरक, सबूत दे दिए हैं, जिससे तुम सन्तुष्ट हो गये हो। जब तुम आगे बढो, तो अपने राष्ट्र को सदैव यही शब्द बोलो, यह कि वे सनातन धर्म के लिए उठ रहे है, कि वे विश्व के लिए और न कि स्वंय के लिए उठ रहे हैं। विश्व की सेवा के लिए मैं उनको स्वतंत्रता दे रहा हूं। इसलिए जब यह कहा जाता है कि भारत उठेगा, तो यह सनातन धर्म है जो महान होगा। जब यह कहा जाता है कि भारत अपने को फैलायेगा और बढायेगा, तो यह सनातन धर्म है जो अपने को दुनिया मे फैलायेगा और बढायेगा। धर्म के लिए और धर्म के द्वारा ही भारत अस्तित्व मे है। धर्म की वृद्धि करने का अर्थ देश की वृद्धि करना है। मैने तुम्हे दिखाया है कि मैं सर्वत्र (सब जगह) और सब मनुष्यों और सब चीजो मे हूं, कि मै इस आन्दोलन मे हूं और मै केवल उनमे ही काम नही कर रहा हूं जो देश के लिए संघर्ष कर रहे हैं बल्कि मै उनमे भी काम कर रहा हूं जो उनका विरोध कर रहे है और उनके रास्ते मे खडे हैं। मै हरेक मे काम कर रहा हूं और मनुष्य जो भी सोचते या करते हैं, वे मेरे उद्देश्य मे मदद करने के अतिरिक्त और कुछ नही कर सकते। वे भी मेरा कार्य कर रहे हैं, वे मेरे शत्रु नही बल्कि मेरे यंत्र हैं। अपने सब कार्यों मे बिना यह जाने कि किधर चल रहे हो तुम आगे बढ रहे हो। तुम्हारा मकसद एक चीज को करना होता है और तुम दूसरी कर देते हो। तुम्हारा लक्ष्य एक परिणाम प्राप्त करना होता है और तुम्हारे प्रयत्न उसका जरिया बनते हैं जो उससे अलग या विरूद्ध है। यह शक्ति है जो आगे बढी है और जनता मे समाहित हुई है। बहुत समय पहले से मै इस विप्लव को तैयार कर रहा हूं और अब समय आ गया है और इसकी सिद्धि के लिए मैं इसका नेतृत्व करूंगा।”
तो यह है जो मुझे आपसे कहना है। तुम्हारी सभा का नाम “धर्म संरक्षण सभा” है। ठीक है, धर्म की रक्षा करना, हिन्दू धर्म की रक्षा करना और उसे दुनिया के समक्ष उठाना, यही कार्य हमारे सामने है।
लेकिन हिन्दू धर्म क्या है? यह धर्म क्या है जिसको हम सनातन कहते हैं, अमर कहते हैं? यह हिन्दू धर्म इसीलिए है क्योंकि हिन्दू राष्ट्र ने इसे जीवित रखा है, क्योंकि इस उपमहाद्वीप मे समुद्र और हिमालय के एकांत मे यह पला-बढा है, क्योंकि इस पवित्र और प्राचीन भूमि मे आर्य जाति को इसे युगों तक बचाए रखने की जिम्मेदारी दी गई थी।लेकिन यह किसी एक देश की सीमाओ तक सीमित नही है, सीमाओ से घिरे विश्व के किसी एक हिस्से की यह विशेष तौर पर और सदैव के लिए मिलकियत नही है।
जिसे हम हिन्दू धर्म कहते हैं वह वास्तव मे अमर धर्म है, क्योंकि यह सार्वभौमिक धर्म है जो और सभी का आलिंगन करता है। यदि कोई धर्म सार्वभौमिक नही है तो वह अमर नही हो सकता। एक संकुचित (संकीर्ण) धर्म, एक सम्प्रदायवादी धर्म, एक अनन्य (एकमात्र) धर्म एक सीमित समय और एक सीमित उद्देश्य के लिए जीवित रह सकता है।
यह एक ऐसा धर्म है जो विज्ञान की खोजों और दर्शनशास्त्र के अन्दाजो को सम्मिलित और पूर्वानुमान करके भौतिकवाद के ऊपर विजय प्राप्त कर सकता है। यह एक ऐसा धर्म है जो मानवजाति को ईश्वर से हमारी निकटता को बताता है और अपने दायरे मे उन सभी सम्भव साधनों का आलिंगन करता है जिनके द्वारा इंसान ईश्वर से साक्षातकार कर सकता है। यह एक ऐसा धर्म है जो प्रति क्षण सत्य का आग्रह करता है जिसको सब धर्म स्वीकार करते हैं कि वह (ईश्वर) सभी मनुष्यों मे है और सभी चीजों मे है और यह कि उस (ईश्वर) मे ही हम गतिमान हैं और हमारा अस्तित्व है।
यह एक ऐसा धर्म है जो हमे न केवल इस सत्य को समझने और विश्वास करने मे समर्थ बनाता है बल्कि इस (सत्य) को अपने अस्तित्व के हर भाग मे सिद्ध करने मे समर्थ बनाता है। यह एक ऐसा धर्म है जो विश्व को यह दिखाता है कि यह विश्व क्या है, कि यह वसुदेव (ईश्वर) की लीला है। यह एक ऐसा धर्म है जो हमे दिखाता है कि हम उस लीला मे इसके सूक्ष्मतम कानूनों और उदार नियमों मे अपना किरदार सर्वोत्तम ढंग से कैसे अदा कर सकते हैं। यह एक ऐसा धर्म है जो जीवन के किसी भी छोटे से छोटे विवरण को धर्म से अलग नही करता, जो यह जानता है कि अमरत्व क्या है और जिसने मृत्यु की सच्चाई को हमसे पूरी तरह दूर कर दिया है।
यही शब्द है जो तुमसे आज कहने के लिए मेरे मुख मे रख दिया गया है। जिसको कहने का मै इरादा रखता था वह मुझ से दूर रख दिया गया है, और जो मुझे दिया गया है उससे परे मुझे कुछ नही कहना है। मै वही कह सकता हूं जो शब्द मुझे दिया गया है। वह शब्द अब समाप्त हो गया है। एक बार पहले भी मै अपने भीतर की इसी ताकत के साथ बोला था और तब मैने कहा था कि यह आन्दोलन एक राजनैतिक आन्दोलन नही है और कि राष्ट्रवाद राजनीति नही है बल्कि एक धर्म है, एक पंथ है, एक विश्वास है। आज फिर मै इसे दुबारा कहता हूं, लेकिन इसे मै दूसरे ढंग से कहता हूं। अब मै यह नही कहता कि राष्ट्रवाद एक पंथ है, एक धर्म है, एक विश्वास है; मै कहता हूं कि यह सनातन धर्म है जो हमारे लिए राष्ट्रवाद है। इस हिन्दू राष्ट्र का जन्म सनातन धर्म के साथ हुआ था, इसके साथ यह गतिमान है और इसके साथ यह विकसित होता है। जब सनातन धर्म का ह्रास होता है, तब राष्ट्र का ह्रास होता है, और यदि सनातन धर्म का नष्ट होना सम्भव हो, तो सनातन धर्म के साथ यह नष्ट हो जायेगा।
सनातन थर्म, यही राष्ट्रवाद है।
यही संदेश है जो मुझे तुमसे कहना है।